एक चुटकी जहर रोजाना :-
आरती नामक की एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख्यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।
आरती और उसकी सास का आये दिन झगड़ा होने लगा। दिन बीते, महीने बीते, साल भी बीत गया, न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी। आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी।
एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगड़ा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज होकर मायके चली आई। आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे, उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ, नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी। ”
बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को जहर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी, क्योंकि वह जहर मैं तुम्हें दूंगा, इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.” लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे जहर देना ही होगा, अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !”
कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी, लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”
“क्या करना होगा ?” आरती ने पूछा। पिता ने एक पुड़िया में जहर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुड़िया में से सिर्फ एक चुटकी जहर रोज अपनी सास के भोजन में मिलाना है। कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर ५ से ६ महीनों में मर जाएगी, लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई”।
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा, ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए, वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा। इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगड़ा नहीं करोगी, बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?” आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा, उसने पिता की बात मान ली और जहर की पुड़िया लेकर ससुराल चली आई।
ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी जहर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया। साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया। अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती, बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती। रोज उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख्याल रखती। सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।
कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया, बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए। आरती नियमित रूप से सास को रोज एक चुटकी जहर देती आ रही थी, किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था। सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी। पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नजर आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए जहर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस जहर के असर को खत्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती। वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “जहर ? कैसा जहर ? मैंने तो तुम्हें जहर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था, हा हा हा !!!”
“बेटी को सही रास्ता दिखायें,
माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करें”।