1. एक वकील साहब ने अपने बेटे का रिश्ता तय किया। कुछ दिनों बाद, वकील साहब होने वाले समधी के घर गए तो देखा कि होने वाली समधिन खाना बना रही थीं। सभी बच्चे और होने वाली बहू टी वी देख रहे थे। वकील साहब ने चाय पिया, कुशलक्षेम जाना और चले आये।
    एक माह बाद, वकील साहब समधी जी के घर फिर गए। देखा, समधिन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और होने वाली बहू सो रही थी। वकील साहब ने खाना खाया और चले आये।
    कुछ दिन बाद, वकील साहब किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गए। घर में जाकर देखा, होने वाली समधिन बर्तन साफ कर रही थी, बच्चे टीवी देख रहे थे और होने वाली बहू खुद के हाथों में नेलपेंट लगा रही थी। वकील साहब ने घर आकर, गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर पहुंचाई कि हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं है।
    कारण पूछने पर वकील साहब ने कहा कि मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया। तीनों बार, सिर्फ समधिन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं। एक भी बार मुझे होने वाली बहू घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी। जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त पाकर भी उनकी मदद करने का न सोचे, उम्र दराज माँ से कम उम्र की, जवान होकर भी स्वयं की माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे, वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी? मुझे अपने बेटे के लिए एक बहू की आवश्यकता है, किसी गुलदस्ते की नहीं, जो किसी फ्लावरपाट में सजाया जाये।
    बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम काज अवश्य कराना चाहिए। समय-समय पर डांटना भी चाहिए, जिससे ससुराल में ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने की कोशिश ना की जाये। हमारे घर बेटी पैदा होती है, हमारी जिम्मेदारी, बेटी से “बहू ” बनाने की होनी चाहिए।
    अगर हमने, अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई, बेटी में बहू के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सजा, बेटी को तो मिलती ही है साथ ही माँ बाप को भी मिलती हैं, जिन्दगी भर गालियाँ।
    हर किसी को सुन्दर, सुशील बहू चाहिए, लेकिन जब हम अपनी बेटियों में एक अच्छी बहू के संस्कार डालेंगे, तभी तो हमें संस्कारित बहू मिलेगी?
    वृद्धाश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटों को ही कोसते हैं, लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है, वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नहीं भेजते?