अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली (Adhyakshiya Shasan Pranali) शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित शासन प्रणाली है। इसमें कार्यपालिका और विधायिका में आपसी सम्बन्ध संसदीय शासन की तरह घनिष्ठ नहीं होते हैं।
इसमें कार्यपालिका विधायिका के नियन्त्रण से मुक्त होती है और उसका कार्यकाल भी निश्चित होता है। उसे विधानमण्डल के समर्थन और सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं होती । इसमें राष्ट्राध्यक्ष की स्थिति नाम मात्र की न होकर वास्तविक होती है और वह प्रायः जनता द्वारा ही चुना जाता है।
विधानमण्डल अविश्वास प्रस्ताव पास करके न तो राष्ट्रपति को हटा सकता है और न ही उसके द्वारा गठित मन्त्रिमण्डल को । इसमें मन्त्रिमण्डल के सदस्य न तो विधानपालिका के सदस्य होते हैं और न ही उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं।
इसमें राष्ट्रपति ही वास्तविक कार्यपालक होता है, प्रधानमन्त्री नहीं। इसमें शक्ति पृथक्करण पर आधारित कार्यपालिका की शक्तियां विधायिका की तरह ही स्वतन्त्र और औपचारिक होती हैं। यह व्यवस्था अमेरिका में है।
अध्यक्षात्मक सरकार का अर्थ और परिभाषा (Adhyakshiya Shasan Pranali)
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था वह शासन प्रणाली है, जिसमें कार्यपालिका, विधायिका से पूर्ण रूप से पृथक व स्वतन्त्र होती है औरशासन की कार्यपालक शक्तियां शाासनाध्यक्ष में ही निहित होती हैं और वह उन शक्तियों का स्वतन्त्रता पूर्वक प्रयोग कर सकता है।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित ऐसी सरकार का गठन करती है जो विधायिका के हस्तक्षेप से मुक्त होकर अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करती है। कुछ विद्वानों नें इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया है :-
गैटिल के अनुसार, “अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका का अध्यक्ष या प्रधान अपने कार्यकाल मेंअपनी नीतियों और कार्यों के बारे में विधानमण्डल से पूर्ण रूप में स्वतन्त्र होता है।”
गार्नर के अनुसार, “अध्यक्षात्मक सरकार वह है जिसमें कार्यपालिका या राज्य का अध्यक्ष तथा उसका मन्त्रिमण्डल संविधान की दृष्टि में विधायिका से अपनी अवधि के बारे में तथा नीतियों के बारे में स्वतन्त्र होते हैं। इसमें राष्ट्राध्यक्ष नाममात्र की कार्यपालिका के स्थान पर वास्तविक कार्यपालिका होता है और संविधान तथ कानून द्वारा प्रदत्त शक्तियों का स्वतन्त्र ववास्तविक प्रयोग करता है।”
बेजडॉट के अनुसार, “अध्यक्षात्मक सरकार वह है जिसमें व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की शक्तियां एक दूसरे से स्वतन्त्रहोती हैं।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्तियों का पृथवकरण के सिद्धान्त पर आधारित शासन प्रणाली है, जिसमें कार्यपालिका विधायिका के नियन्त्रण से मुक्त रहकर संविधान प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करकेशासन संचालन करती है। इसमें कार्यपालिका का अध्यक्ष एक ऐसा व्यक्ति होता है जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता ।
अध्यक्षात्मक सरकार की विशेषताएं (Adhyakshiya Shasan Pranali Ki Vishestaye)
अध्यक्षात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :-
• इसमें शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया जाता है और कार्यपालिका तथा विधायिका की शक्तियों का स्पष्ट संविधानिक विभाजन होता है।
• इसमें राष्ट्राध्यक्ष राज्य व सरकार का वास्तविक प्रधान होता है। संसदीय सरकार की तरह उसकी स्थिति नाममात्र की नहीं होती ।
• इसमें मन्त्रीमण्डल या शासक को विधायिका के नियन्त्रण से मुक्ति प्राप्त रहती है। उसका विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायित्व का अभाव रहता है। उसका उत्तरदायित्व तो संविधान के प्रति ही रहता है।
• इसमें कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित होता है। संविधान में ही कार्यकाल के बारे में स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है।
• इसमें नाममात्र तथा वास्तविक कार्यपालिका में अन्तर नहीं किया जाता, क्योंकि इसमें राज्य का अध्यक्ष सरकार का भी अध्यक्ष होता है।
• इसमें राष्ट्रपति विधामण्डल को भंग नहीं कर सकता, क्योंकि उसका कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित होता है।
• इसमें मन्त्रीमण्डल जैसी संस्था का अभाव पाया जाता है। राष्ट्रपति सरकार चलाने के लिए अपने स्वामीभवत सहयोगियों को नियुवत कर लेता है। इसलिए यह कैबिनेट जैसी संस्था से मुक्त है।
• इसमें कार्यपालक शक्तियों के प्रयोग व उत्तरदायित्व का भार राष्ट्रपति या शासनाध्यक्ष पर ही होता है।
• इसमें विधानमण्डल सरकार के अन्य अंगों से सर्वोच्च माना जाता है, क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर वह महाभियोग द्वारा कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के न्यायधीशों को पद से हटा सकता है।
• इसमें कार्यपालिका जनता के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी रहती है। इसी कारण वाटरगेट काण्ड में राष्ट्रपति निकसन ने अपना उत्तरदायित्व मानते हुए त्यागपत्रा दे दिया था।
• इसमें न्यायपालिका को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त रहती है जिससे कार्यपालिका तथा विधायिका का गतिरोध दूर हो जाता है।
अध्यक्षात्मक सरकार के गुण (Adhyakshiya Shasan Sarkar Ke Gun)
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं :-
• स्थायी सरकार
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में सरकार का कार्यकाल व्यवस्थापिका की इच्छा पर निर्भर नहीं होता है। इसमें कार्यपालिका का अध्यक्ष निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है। उसे विधायिका अविश्वास का प्रस्ताव पास करके हटा नहीं सकती। इससे सरकार की शासन सम्बन्धी नीतियों व कार्य संचालन में स्थायित्व बना रहता है और शासन में कुशलता का गुण आता है। इसमें स्थायी सरकार के लाभ जनता को प्राप्त होते रहते हैं।
• नीति की एकता
अध्यक्षात्मक शासन में सरकार का कार्यकाल निश्चित होने के कारण एक ही नीति लम्बे समय तक चलती रहती है। कई बार अमेरिका में राष्ट्रपति ने लगातार कई कार्यकाल पूरे किए हैं। ऐसे में एक बार बनाई गई नीति लम्बे समय तक प्रभावी रह सकती है। फ्रांस में यह कार्यकाल 7 वर्ष होने के कारण नीति सम्बन्धी स्थायित्व कायम रखने में कोई असुविधा नहीं होती ।
• संकटकाल के लिए उपयुक्त
अध्यक्षात्मक सरकार में सारी कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति या शासनाध्यक्ष में ही निहित रहती हैं। इसमें संकटकालीन परिस्थितियों मेंकोई भी निर्णय लेने से पहले विधानमण्डल की सहमति लेना आवश्यक नहीं है। इसलिए संकटकालीन परिस्थितियों में शीघ्रता से निर्णय लेकर तत्पर कार्यवाही की जा सकती है।
• दलबन्दी का अभाव
इस शासन प्रणाली में राजनीतिक दलों का प्रभाव सरकार बनने तक ही रहता है। संसदीय सरकार में तो विरोधी दल दलबन्दी करके सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ पड्यन्त्र रचते रहते हैं, परन्तु अध्यक्षात्मक शासन में दलों की यह उग्रता समाप्त हो जाती है। इसमें विरोधी दल को पता होता है कि निश्चित अवधि से पहले कार्यपालिका को हटाया नहीं जा सकता। इसी कारण वे दलीय भावना त्यागकर शासन संचालन में पूरा सहयोग देते रहते हैं।
•निरंकुशता का अभाव
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्तियों के पृथक्करण पर आधारित होने के कारण इसमें सरकार का कोई भी अंग इतनी शक्तियों का स्वामी नहीं होता है कि वह निरंकुश बन सके। इसमें विधायिका कानून बनाती है और कार्यपालिका उन्हें लागू करती है। कानून बनाने तथा लागू करने की शक्ति का विभाजन होने के कारण निरंकुशता का भय समापत हो जाता है।
• प्रशासन में कुशलता
अध्यक्षात्मक सरकार में राष्ट्रपति ही अपने मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। प्रशासन का सारा भार उसी के कन्धों पर होता है और अपने कार्यों की सफलता या असफलता के लिए वडी उत्तरदायी होता है। उसे न तो विधानमण्डल की बैठकों में भाग लेना होता है और न ही विधायिका को नियन्त्रण में रहना पड़ता है । वह अपना सारा समय शासन कार्यों में ही लगाता है। वह प्रशासनिक अधिकारियों तथा अपने मन्त्रियों पर पूरा नियन्त्रण रखकर प्रशासन में कार्यकुशलता लाता है। कार्य विशेष में निपुण होने के कारण उसकी प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
• योग्य व्यक्तियों की सरकार
अध्यक्षात्मक सरकार में राष्ट्रपति योग्य व्यक्तियों को ही प्रशासन व मन्त्रिमण्डल में स्थान देता है । संसदीय सरकार की तरह इसमें दल विशेष के मन्त्री नहीं होते, बल्कि किसी भी दल के योग्य व्यक्ति नेता का पद ग्रहण कर सकते हैं। राष्ट्रपति या राष्ट्राध्यक्ष शासन के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होने के कारण योग्य व्यक्तियों को सरकार में शामिल करके निष्पक्षता व ईमानदारी से सरकार चलाने का प्रयास करता है ताकि जनता के प्रति जवाबदेह बना जा सके। इस प्रकार अध्यक्षात्मक सरकार योग्य व्यक्तियों की ही सरकार है।
• नागरिकों की स्वतन्त्रता व अधिकारों की रक्षक
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों के पृथवकरण के कारण प्रत्येक अंग के अपने अपने कर्त्तव्य निश्चित होते हैं। प्रत्येक अंग एक दूसरे पर निरोध व संतुलन की व्यवस्था कायम करके जनता के अधिकार और स्वतन्त्रताओं की रक्षा भी करता है। कानून बनाने तथा लागू करने की शक्तियां पृथक होने के कारण न तो अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का भय होता है और न ही नागरिकों को अपनी स्वतन्त्रता व अधिकारों के नष्ट होने का ।
• अच्छे कानूनों का निर्माण
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कानून निर्माण का कार्य व्यवस्थापिका का ही होता है। उसे यह भी भय होता है कि यदि गलत कानून का निर्माण किया गया तो उसे न्यायपालिका द्वारा अवैध भी घोषित किया जा सकता है। अपने काम में दक्ष होने के कारण विधायिका प्रायः ठीक कानूनों का ही निर्माण करने के प्रयास करती है।
• बहुदलीय प्रणाली के लिए उपयुक्त
इस शासन प्रणाली के समर्थकों का कहना है कि अध्यक्षात्मक सरकार उन देशों के लिए अधिक उपयोगी है, वहां पर अनेक राजनीतिक दल हैं और दलबन्दी को प्रोत्साहित करके वे आए दिन सरकार गिराने की फिराक में रहते हैं। अध्यक्षात्मक सरकार का कार्सकाल निश्चित होने के कारण तथा कार्यपालिका का विधायिका के प्रति उत्तरदायित्व न होने के कारण बहुदलीय प्रणाली के दोपों से निपटने में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अधिक कारगर सिद्ध हो सकती है। 1
अध्यक्षात्मक सरकार के दोष (Adhyakshiya Sarkar Ke Dosh)
यद्यपि अध्यक्षात्मक सरकार के अनेक फायदे हैं, लेकिन फिर भी कुछ विद्वानों ने इसे अनुत्तरदायी और निरंकुश सरकार कहकर इसकी आलोचना की है। उन्होंने अपने उत्तर के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए हैं :-
• इसमें कार्यपालिका और विधायिका में सामंजस्य के अभाव में कई बार गतिरोध की स्थिति पैदा हो जाती है जिसे शासन में वांछित गतिशीलता और दृढ़ता का अभाव पैदा हो जाता है।
• इसमें कार्यवाहक शक्तियां राष्ट्रपति के पास होती हैं और उसका कार्यकाल भी निश्चित होता है। उसे यह पता होता है कि उसे समय पूर्व हटाया भी नहीं जा सकता, इसलिए वह निरंकुश बन सकता है।
• इसमें वैकल्पिक सरकार का कोई प्रावधान नहीं है। विशेष स्थिति में राज्याध्यक्ष को बदलना इसमें असम्भव है।
• अध्यक्षात्मक सरकार में शासन की शक्तियां एक ही व्यक्ति या संस्था में केन्द्रित होती हैं। आधुनिक लोकतन्त्र में शक्तियों का केन्द्रीयकरण कभी मान्य नहीं हो सकता । अतःअयक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका शक्तियों का केन्द्रीयकरण लोकतन्त्र की आत्मा के विरुद्ध है।
• इस शासन प्रणाली में आलोचना का अभाव होने के कारण सरकार को अपनी कमियों को समझने व उनकी पुनरावृत्ति रोकने का अवसर प्राप्त नहीं होता ।
• अध्यक्षात्मक सरकार में राष्ट्रपति अपनी नीतियों के लिए विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। इसमें मन्त्री परिषद के सदस्य राष्ट्रपति के प्रति ही जबावदेह होते हैं। इससे उत्तरदायित्व के सिद्धान्त का महत्त्व इस सरकार में कम हो जाता है।
• अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्तियों के पृथवकरण पर आधारित होती है, लेकिन व्यवहार में शवितयों का पूर्ण पृथवकरण सम्भव नही है।
• इस शासन प्रणाली में लोचशीलता का गुण नहीं है। लोचशीलता के अभाव में संकटकाल के समय विशेष कानूनों का निर्माण करना इसमें सम्भव नहीं हो पाता । इससे संकटकाल का सामना करने में प्रायः असफलता ही हाथ लगती है।
• इसमें राजनीतिक दलों द्वारा जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का अवसर नहीं मिलता है। राजनीतिक दल वास्तव में लोकतन्त्र की धुरी होते हैं। इनकी सजग प्रहरी की भूमिका से वंचित रहने पर न तो जनता ही जागरूक बन पाती है और न ही शासक वर्ग जन- इच्छा के अनुकूल चल पाता है।
• इसमें व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के पृथवकरण ने न्यायपालिका को इन दोनों अंगों पर सर्वोच्च बना दिया है। कई बार सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का गलत प्रयोग करने से भी नहीं चूकता। इस तरह व्यवस्थापिका व कार्यपालिका से गतिरोध का परिणाम न्यायिक निरंकुशता के जन्म का कारण बन जाता है। इसी कारण आज न्यायपालिका को व्यवस्थापिका का तीसरा सदन कहा जाने लगा है।
• अध्यक्षात्मक सरकार में विधायिका व कार्यपालिका में गतिरोध होने के कारण अच्छे कानूनों का बन पाना मुश्किल होता है।
• अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में चुनावी खर्च बहुत अधिक होता है। क्योंकि इसमें उम्मीदवार को पता होता है कि यदि वह जीत गया तो वह शासन का भोग अपनी इच्छानुसार निश्चित समय तक बिना किसी के दबाव के करेगा ।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में काफी अवगुण भी हैं। इसमें शासन की शक्तियां एक व्यक्ति के हाथों में होने के कारण निरंकुशता का खतरा उत्पन्न हो सकता है। लेकिन अमेरिका जैसे देश में यह शासन-प्रणाली सफलतापूर्वककार्य कर रही है।
वास्तव में किसी भी शासन प्रणाली की सफलता देश की परिस्थितियों और नागरिकों के चरित्र पर ही निर्भर करती है। इसलिए शासन प्रणाली चाहे कोई भी हो, उसका देश – विशेष के लिए उपयोगी होना बहुत जरूरी है।
अमेरिका में इस शासनप्रणाली से बढ़कर किसी दूसरी शासन प्रणाली का विकल्प नहीं हो सकता । प्रत्येक शासन प्रणाली की तरह इसके भी कुछ अवगुणहैं, लेकिन अमेरिका में इसके अवगुणों को इससे दूर रखने का प्रयास करके इसे अधिक उपयोगी बनाया गया है।
अतः देश-कालव परिस्थितियों के अनुसार अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली भी उतनी ही उत्तम है, जितनी संसदीय शासन प्रणाली । यदि ब्रिटेन व भारतमें संसदीय सरकार का प्रतिमान अपनाया गया है तो अमेरिका में अध्यक्षात्मक सरकार का ।
इसलिए परिस्थितियों के अनुसार शक्तियों का केन्द्रीयकरण व संसदीय शासन प्रणालियां देश विशेष के लिए अलग-अलग परिस्थितियों में बराबर महत्वपूर्ण हैं ।
संसदीय एवं राष्ट्रपति व्यवस्था की तुलना
संसदीय व्यवस्था विशेषतायें
1. दोहरी कार्यकारिणी ।
2. बहुमत के दल का शासन ।
3. सामूहिक उत्तरदायित्व ।
4. राजनीतिक एकरूपता ।
5. दोहरी सदस्यता ।
6. प्रधानमंत्री का नेतृत्व ।
7. निचले सदन का विघटन होना ।
8. शक्तियों का समिश्रण ।
गुण
1. विधायिका एवं कार्यपालिका के बीच टकराव ।
2. गैर- उत्तरदायी सरकार ।
3. गैर – उत्तरदायी नेतृत्व की संभावना
4. सीमित प्रतिनिधित्व ।
दोष
1. अस्थायी सरकार ।
2. नीतियों की निश्चितता नहीं।
3. शक्तियों के विभाजन के विरुद्ध ।
4. अकुशल व्यक्तियों द्वारा सरकार का संचालन ।
राष्ट्रपति शासन व्यवस्था विशेषतायें
1. एकल कार्यकारिणी ।
2. राष्ट्रपति एवं विधायिका का पृथक रूप से निश्चित अवधि के लिए निर्वाचन ।
3. उत्तरदायित्व का अभाव।
4. राजनीतिक एकरूपता नहीं रहती।
5. एकल सदस्यता ।
6. राष्ट्रपति का नियंत्रण |
7. निचला सदन विघटन न होना ।
8. शक्तियों का विभेद ।
गुण
1. विधायिका एवं कार्यपालिका के बीच सामंजस्य ।
2. उत्तरदायी सरकार ।
3. निरंकुशता पर रोक ।
4. व्यापक प्रतिनिधित्व ।
दोष
1. स्थायी सरकार।
2. नीतियों में निश्चितता ।
3. शक्तियों के विभाजन पर आधारित ।
4. विशेषज्ञों द्वारा सरकार ।
सारांश
दोनों सरकारों के अपने-अपने कुछ गुण-दोष हैं। यह निश्चय करना एककठिन काम है कि कौन-सी शासन प्रणाली सबसे अधिक उपयुक्त है या नहीं। यह तो देश-विशेष की परिस्थितियों पर ही निर्भरकरता है।
अमुक देश में किसी शासन प्रणाली की सफलता ही उसकी उपयोगिता का आधार होती है। उदाहरण के लिए भारत मेंसंसदीय शासन प्रणाली अधिक उपयुक्त है तो अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अधिक उपयुक्त है।
यद्यपि इन देशों में भीदोनों तरह की शासन प्रणालियों की कुछ कमियां हैं। यदि उन कमियों को दूर कर दिया जाए तो वे वहीं पर भविष्य में भी अधिकउपयोगी रहेंगी। आज विश्व में प्रत्येक देश किसी न किसी रूप में इन दोनों शासन प्रणालियों से अवश्य जुड़ा है।
यदि आंकड़ों केहिसाब से देखा जाए तो संसदीय सरकारें, अध्यक्षात्मक सरकारों की तुलना में आज विश्व में अधिक हैं। यद्यपि आज बदलतीपरिस्थितियों में सुरक्षा व आर्थिक विकास की दृष्टि से एक ऐसी सरकार की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है जो नागरिकों की स्वतन्त्रताओं की रक्षा करने के साथ-साथ उन्हें आर्थिक विकास के अवसर प्रदान करें।
आज अधिकतर विद्वान संसदीय सरकारको अधिक उपयुक्त मानने लगे हैं। यद्यपि यह आवश्यक नहीं है कि संसदीय सरकार अध्यक्षात्मक सरकार का स्थान ले सके ।
अभ्यास-प्रश्न
1. अध्यक्षात्मक सरकार की अवधारणा को स्पष्ट करें।
2. अध्यक्षात्मक के अर्थ और परिभाषा की व्याख्या करें।
3. अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन करें।
4. अध्यक्षात्मक सरकार के गुण को स्पष्ट करें।
5. अध्यक्षात्मक सरकार के दोष को स्पष्ट करें।
6.. संसदीय तथा अध्यक्षात्मक सरकार में तुलना को स्पष्ट करें।