राष्ट्रपति के कार्य क्या है | Rashtrapati Ke Karya

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Table of Contents

राष्ट्रपति (Rashtrapati)

संविधान के भाग के अनुच्छेद 52 से 78 तक में संघ की कार्यपालिका का वर्णन है। संघ की कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल तथा महान्यायवादी शामिल होते हैं।

राष्ट्रपति भारत का राज्य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है और राष्ट्र की एकता, अखंडता एवं सुदृढ़ता का प्रतीक है।

राष्ट्रपति का निर्वाचन (Rashtrapati Ka Nirvachan)

राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से नहीं करती बल्कि एक निर्वाचन मंडल के सदस्यों द्वारा उसका निर्वाचन किया जाता है। इसमें निम्न लोग शामिल होते हैं:

1. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य,

2. राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य, तथा

3. केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली व पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ‘

इस प्रकार संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य, राज्य विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य, राज्य विधानपरिषदों (द्विसदनीय विधायिका के मामलों में) के सदस्य (निर्वाचित व मनोनीत ) और दिल्ली तथा पुदुचेरी विधानसभा के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं।

जब कोई सभा विघटित हो गई हो तो उसके सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकते। उस स्थिति में भी जबकि विघटित सभा का चुनाव राष्ट्रपति के निर्वाचन से पूर्व न हुआ हो ।

संविधान में यह प्रावधान है कि राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व समान रूप से हो, साथ ही राज्यों तथा संघ के मध्य भी समानता हो।

राष्ट्रपति के पद हेतु अर्हताएं (Rashtrapati Pad Ke Liye Ahartaye)

राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए व्यक्ति की निम्न अर्हताओं को पूर्ण करना आवश्यक है:

1. वह भारत का नागरिक हो।

2. वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।

3. वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।

4. वह संघ सरकार में अथवा किसी राज्य सरकार में अथवा किसी स्थानीय प्राधिकरण में अथवा किसी सार्वजनिक प्राधिकरण में लाभ के पद पर न हो।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति के चुनाव के लिए नामांकन के लिए उम्मीदवार के कम से कम 50 प्रस्तावक व 50 अनुमोदक होने चाहिये ।

राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान (Rashtrapati Dwara Shapath)

राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पूर्व शपथ या प्रतिज्ञान लेता है। अपनी शपथ में राष्ट्रपति शपथ लेता है, मैं-

1. श्रद्धापूर्वक राष्ट्रपति पद का कार्यपालन करूंगा;

2. संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा, और;

3. भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति को पद की शपथ दिलाई जाती है।

राष्ट्रपति के पद के लिए शर्ते (Rashtrapati Pad Ke Liye Sharte)

संविधान द्वारा राष्ट्रपति के पद के लिए निम्नलिखित शर्तें निर्धारित की गई हैं:

1. वह संसद के किसी भी सदन अथवा राज्य विधायिका का सदस्य नहीं होना चाहिए। यदि कोई ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो उसे पद ग्रहण करने से पूर्व उस सदन से त्यागपत्र देना होगा।

2. वह कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।

3. उसे बिना कोई किराया चुकाए आधिकारिक निवास (राष्ट्रपति भवन) आवंटित होगा ।

4. उसे संसद द्वारा निर्धारित उप लब्धियों, भत्ते व विशेषाधिकार प्राप्त होंगे।

5. उसकी उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे।

राष्ट्रपति की पदावधि (Rashtrapati Ki Padavdhi)

राष्ट्रपति की पदावधि उसके पद धारण करने की तिथी से पांच वर्ष तक होती है। हालांकि वह अपनी पदावधि में किसी भी समय अपना त्यागपत्र उप-राष्ट्रपति को दे सकता है। इसके अतिरिक्त, उसे कार्यकाल पूरा होने के पूर्व महाभियोग चलाकर भी उसके पद से हटाया जा सकता है।

जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले राष्ट्रपति अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के उपरांत भी पद पर बना रह सकता है। वह इस पद पर पुनः निर्वाचित हो सकता है। वह कितनी ही बार पुनः निर्वाचित हो सकता है।

राष्ट्रपति पर महाभियोग (Rashtrapati Par Mahabhiyog)

राष्ट्रपति पर ‘संविधान का उल्लंघन’ करने पर महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है। हालांकि संविधान ने ‘संविधान का उल्लंघन’ वाक्य को परिभाषित नहीं किया है।

महाभियोग के आरोप संसद के किसी भी सदन में प्रारंभ किए जा सकते हैं। इन आरोपों पर सदन के एक-चौथाई सदस्यों (जिस सदन ने आरोप लगाए गए हैं) के हस्ताक्षर होने चाहिये और राष्ट्रपति को 14 दिन का नोटिस देना चाहिए ।

महाभियोग का प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पारित होने के पश्चात यह दूसरे सदन भेजा जाता है, जिसे इन आरोपों की जांच करनी चाहिए। राष्ट्रपति को इसमें उपस्थित होने तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा।

यदि दूसरा सदन इन आरोपों को सही पाता है और महाभियोग प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित करता है तो राष्ट्रपति को प्रस्ताव पारित होने की तिथि से उसके पद से हटाना होगा ।

अभी तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं चलाया गया है।

राष्ट्रपति के पद की रिक्तता (Rashtrapati Pad Ki Riktta)

राष्ट्रपति का पद निम्न प्रकार से रिक्त हो सकता है:

1. पांच वर्षीय कार्यकाल समाप्त होने पर,

2. उसके त्यागपत्र देने पर,

3. महाभियोग प्रक्रिया द्वारा उसे पद से हटाने पर,

4. उसकी मृत्यु पर’,

5. अन्यथा, जैसे यदि वह पद ग्रहण करने के लिए अर्हक न हो अथवा निर्वाचन अवैध घोषित हो ।

राष्ट्रपति की शक्तियां व कर्तव्य (Rashtrapati Ke Karya)

राष्ट्रपति द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियां व किए जाने वाले कार्य निम्नलिखित हैं:

1. कार्यकारी शक्तियां

2. विधायी शक्तियां

3. वित्तीय शक्तियां

4. न्यायिक शक्तियां

5. कूटनीतिक शक्तियां

6. सैन्य शक्तियां

7. आपातकालीन शक्तियां

कार्यकारी शक्तियां (Rashtrapati Ki Karyakari Shaktiyan)

राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियां व कार्य हैं:

(1) भारत सरकार के सभी शासन संबंधी कार्य उसके नाम पर किए जाते हैं।

(i) वह नियम बना सकता है ताकि उसके नाम पर दिए जाने वाले आदेश और अन्य अनुदेश वैध हों।

(ii) वह ऐसे नियम बना सकता है जिससे केंद्र सरकार सहज रूप से कार्य कर सके तथा मंत्रियों को उक्त कार्य सहजता से वितरत हो सकें।

(iv) वह प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है, तथा वे उसकी प्रसादपर्यंत कार्य करते हैं।

(v) वह महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा उसके वेतन आदि निर्धारित करता है। महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर कार्य करता है।

(vi) वह भारत के महानियंत्रक व महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों, राज्य के राज्यपालों, वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों आदि की नियुक्ति करता है।

(vii) वह केंद्र के प्रशासनिक कार्यों और विधायिका के प्रस्तावों से संबंधित जानकारी की मांग प्रधानमंत्री से कर सकता है ।

(viii) राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से किसी ऐसे निर्णय का प्रतिवेदन भेजने के लिये कह सकता है, जो किसी मंत्री द्वारा लिया गया हो, किंतु पूरी मंत्रिपरिषद ने इसका अनुमोदन नहीं किया हो।

(ix) वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए एक आयोग की नियुक्ति कर सकता है।

(x) वह केंद्र – राज्य तथा विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतर्राज्यीय परिषद की नियुक्ति कर सकता है।

(a) वह स्वयं द्वारा नियुक्त प्रशासकों के द्वारा केंद्रशासित राज्यों का प्रशासन सीधे संभालता है।

(i) वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकता है। उसे अनुसूचित क्षेत्रों तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शक्तियां प्राप्त हैं।

विधायी शक्तियां (Rashtrapati  Ki Vidhayi Shaktiyan)

राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग है तथा उसे निम्नलिखित विधायी शक्तियां प्राप्त हैं:

(1) वह संसद की बैठक बुला सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है और लोकसभा को विघटित कर सकता है। वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आह्वान कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।

(ii) वह प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है।

(iii) वह संसद में लंबित किसी विधेयक या अन्यथा किसी संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है।

(iv) यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हों तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है। इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति व उप-सभापति दोनों पद रिक्त हों तो वह राज्यसभा के किसी भी सदस्य को सदन की अध्यक्षता सौंप सकता है।

(v) वह साहित्य, विज्ञान, कला व समाज सेवा से जुड़े अथवा जानकार व्यक्तियों में से 12 सदस्यों को राज्यसभा के लिए मनोनीत करता है ।

(vi) वह लोकसभा में दो आंग्ल-भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है।

(vii) वह चुनाव आयोग से परामर्श कर संसद सदस्यों की निरर्हता के प्रश्न पर निर्णय करता है।

(ii) संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश अथवा आज्ञा आवश्यक है। उदाहरणार्थ, भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी विधेयक अथवा राज्यों की सीमा परिवर्तन या नए राज्य के निर्माण या संबंधी विधेयक ।

(x) जब एक विधेयक संसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह:

(अ) विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है; अथवा (ब) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है; अथवा (स) विधेयक को (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) संसद के पुनर्विचार के लिए लौटा देता है। हालांकि यदि संसद विधेयक को संशोधन या बिना किसी संशोधन के पुनः पारित करती है तो राष्ट्रपति की अपनी सहमति देनी ही होती है ।

(x) राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति:

(अ) विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है; अथवा

(ब) विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है, अथवा;

(स) राज्यपाल को निर्देश देता है कि विधेयक (यदि वह धन विधेयक नहीं है तो) को राज्य विधायिका को पुनर्विचार हेतु लौटा दे। यह ध्यान देने की बात है कि यदि राज्य विधायिका विधेयक को पुनः राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है।

(a) वह संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी कर सकता है। यह अध्यादेश संसद की पुनः बैठक के छह हफ्तों के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है। वह किसी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है।

(xi) वह महानियंत्रक व लेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग व अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है।

(xiii) वह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादर एवं नागर हवेली एवं दमन व दीव में शांति, विकास व सुशासन के लिए विनियम बना सकता है। पुडुचेरी के भी वह नियम बना सकता है परंतु केवल तब जब वहाँ की विधानसभा निलंबित हो अथवा विघटित अवस्था में हो।

वित्तीय शक्तियां (Rashtrapati Ki Vittiya Shaktiyan)

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है।

(ii) वह वार्षिक वित्तीय विवरण (केंद्रीय बजट) को संसद के समक्ष रखता है।

(iii) अनुदान की कोई भी मांग उसकी सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।

(iv) वह भारत की आकस्मिक निधि से किसी अदृश्य व्यय हेतु अग्रिम भुगतान की व्यवस्था कर सकता है।

(v) वह राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।

न्यायिक शक्तियां (Rashtrapati Ki Nyayik Shaktiyan)

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां व कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) वह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।

(ii) वह उच्चतम न्यायालय से किसी विधि या तथ्य पर सलाह ले सकता है परंतु उच्चतम न्यायालय की यह सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है

(iii) वह किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किसी व्यक्ति के लिए दण्डदेश को निलंबित, माफ या परिवर्तित कर सकता है, या दण्ड में क्षमादान, प्राणदण्ड स्थगित, राहत और माफी प्रदान कर सकता है।

(अ) उन सभी मामलों में, जिनमें सजा सैन्य न्यायालय में दी गई हो,

(ब) उन सभी मामलों में, जिनमें केंद्रीय विधियों के विरुद्ध अपराध के लिए सजा दी गई हो, और

(स) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड का स्वरूप प्राण दंड हो ।

कूटनीतिक शक्तियां (Rashtrapati Ki Kutnitik Shaktiyan)

अंतर्राष्ट्रीय संधियां व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं हालांकि इनके लिए संसद की अनुमति अनिवार्य है। वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों व मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है और कूटनीतिज्ञों, जैसे- राजदूतों व उच्चायुक्तों को भेजता है एवं उनका स्वागत करता है।

सैन्य शक्तियां (Rashtrapati Ki Sainya Shaktiyan)

वह भारत के सैन्य बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। इस क्षमता में वह थल सेना, जल व वायु सेना के प्रमुखों की नियुक्ति करता है। वह युद्ध या इसकी समाप्ति की घोषणा करता है किंतु यह संसद की अनुमति के अनुसार होता है।

आपातकालीन शक्तियां (Rashtrapati Ki Aapatkalin Shaktiyan)

उपरोक्त साधारण शक्तियों के अतिरिक्त संविधान ने राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में आपातकालीन शक्तियां भी प्रदान की हैं’:

(i) राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352);

(ii) राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 तथा 365), एवं;

(iii) वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) ।

राष्ट्रपति की वीटो शक्ति (Rashtrapati Ki Veto Power)

संसद द्वारा पारित कोई विधेयक तभी अधिनियम बनता है जब राष्ट्रपति उसे अपनी सहमति देता है। जब ऐसा विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत होता है तो उसके पास तीन विकल्प होते हैं (संविधान के अनुच्छेद 111 के अंतर्गत ):

1. वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है; अथवा

2. विधेयक पर अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रख सकता है;

3. वह विधेयक (यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है) को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है।

हालांकि यदि संसद इस विधेयक को पुनः बिना किसी संशोधन के अथवा संशोधन करके, राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करे तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही होगी।

राष्ट्रपति को ये शक्ति देने के दो कारण हैं –

(अ) संसद को जल्दबाजी और सही ढंग से विचारितन किए गए विधान बनाने से रोकना, और;

(ब) किसी असंवैधानिक विधान को रोकने के लिए।

वीटो शक्तियों के प्रकार (Rashtrapati Ki Veto Shakti Ke Prakar)

1. अत्यांतिक वीटो, अर्थात् विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर अपनी राय सुरक्षित रखना ।

2. विशेषित वीटो, जो विधायिका द्वारा उच्च बहुमत द्वारा निरस्त की जा सके।

3. निलंबनकारी वीटो, जो विधायिका द्वारा साधारण बहुमत द्वारा निरस्त की जा सके।

4. पॉकेट वीटो, विधायिका द्वारा पारित विधेयक पर कोई निर्णय नहीं करना ।

उपरोक्त चार में से, भारत के राष्ट्रपति में तीन शक्तियां अत्यांतिक वीटो, निलंबनकारी वीटो और पॉकेट वीटो निहित हैं। भारत के राष्ट्रपति के संदर्भ में विशेषित वीटो महत्वहीन है।

राष्ट्रपति की वीटो शक्ति पर एक नज़र केंद्रीय विधायिका

सामान्य विधेयकों के संबंध में

1. स्वीकृति दे सकता है।

2. अस्वीकार कर सकता है।

3. वापस कर सकता है।

धन विधेयकों को संबंध में:

1. स्वीकृति दे सकता है। दे

2. अस्वीकार कर सकता है (परंतु वापस नहीं कर सकता) संविधान संशोधन विधेयकों के संबंध में: केवल स्वीकृति दे सकता है, (न वापस कर सकता है न अस्वीकार कर सकता है) ।

राज्य विधायिका

सामान्य विधेयकों के संबंध में

1. स्वीकृति दे सकता है।

2. अस्वीकार कर सकता

3. वापस कर सकता है।

धन विधेयकों को संबंध में:

1. स्वीकृति दे सकता है।

2. अस्वीकार कर सकता है परंतु वापस नहीं कर सकता।

3. संविधान संशोधन संबंधी विधेयकों को राज्य विधायिका में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। इन अध्यादेशों का प्रभाव व शक्तियां, संसद द्वारा बनाए गए कानून की तरह ही होती हैं परंतु ये प्रकृति से अल्पकालीन होते हैं।

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधायी शक्ति है। यह शक्ति उसे अप्रत्याशित अथवा अविलंबनीय मामलों से निपटने हेतु दी गई है परंतु इस शक्ति के प्रयोग में निम्नलिखित चार सीमाएं हैं;

1. वह अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब संसद के दोनों अथवा दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो।

2. वह कोई अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है। जब वह इस बात से संतुष्ट हो कि मौजूदा परिस्थिति ऐसी है कि उसके लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है।

3. सभी मामलों में अध्यादेश जारी करने की उसकी शक्ति, केवल समयावधि को छोड़कर, संसद की कानून बनाने की शक्तियों के समविस्तीर्ण ही है। इसकी दो विवक्षाएं हैं:

(अ) अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है।

(ब) अध्यादेश को वहीं संवैधानिक सीमाएं होती हैं, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकरण अथवा उसको छीन नहीं सकता है।

राष्ट्रपति भी किसी भी समय किसी अध्यादेश को वापस ले सकता है। हालांकि राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति उसकी कार्य स्वतंत्रता का अंग नहीं है और वह किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है अथवा वापस लेता है।

एक विधेयक की भांति एक अध्यादेश भी पूर्ववर्ती हो सकता है अर्थात इसे पिछली तिथि से प्रभावी किया जा सकता है। यह संसद के किसी भी कार्य या अन्य अध्यादेश को संशोधित अथवा निरसित कर सकता है।

यह किसी कर विधि को भी परिवर्तित अथवा संशोधित कर सकता है हालांकि संविधान संशोधन हेतु अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गई है, जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी करार दिए गए हैं:

1. संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिए गए दंड में; 2. सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में, और; 3. यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो ।

राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति में निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैँ-

1. क्षमा

इसमें दण्ड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी की सभी दण्ड, दण्डादेशों और निर्रहताओं से पूर्णत: मुक्त कर दिया जाता है।

2. लघुकरण

इसका अर्थ है कि दंड के स्वरूप को बदलकर कम करना । उदाहरणार्थ मृत्युदंड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना, जिसे साधारण कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है।

3. परिहार

इसका अर्थ है, दंड के प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम करना । उदाहरण के लिए दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना ।

4. विराम

इसका अर्थ है किसी दोषी को मूल रूप में दी गई सजा को किन्हीं विशेष परिस्थिति में कम करना, जैसे- शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओं को गर्भावस्था की अवधि के कारण ।

5. प्रविलंबन

इसका अर्थ है किसी दंड (विशेषकर मृत्यु दंड) पर अस्थायी रोक लगाना। इसका उद्देश्य है कि दोषी व्यक्ति का क्षमा याचना अथवा दंड के स्वरूप परिवर्तन की याचना के लिए समय देना ।

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भारत के सभी राष्ट्रपतियों की सूची (Bharat Ke Rashtrapatiyon Ki Suchi)

1. डॉ राजेन्द्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 – 13 मई 1962

2. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन 13 मई 1962 – 13 मई 1967

3. डॉ जाकिर हुसैन 13 मई 1967 – 3 मई 1969

–  वी. वी गिरी (Acting President) 3 मई 1969 – 20 जुलाई 1969

–  मोहम्मद हिदायतुल्लाह (Acting President) 20 जुलाई 1969 to 24 अगस्त 1969

4. वी. वी गिरी 24 अगस्त 1969 – 24 अगस्त 1974

5. फखरुद्दीन अली अहमद 24 अगस्त 1974 – 11 फ़रवरी 1977

–. बासप्पा दनप्पा जत्ती (Acting President) 11 फ़रवरी 1977 – 25 जुलाई 1977

6. नीलम संजीव रेड्डी 25 जुलाई 1977 – 25 जुलाई 1982

7. ज्ञानी जैल सिंह 25 जुलाई 1982 – 25 जुलाई 1987

8. रामास्वामी वेंकटरमण 25 जुलाई 1987 – 25 जुलाई 1992

9. शंकरदयाल शर्मा 25 जुलाई 1992 – 25 जुलाई 1997

10. के. आर. नारायणन 25 जुलाई 1997 – 25 जुलाई 2002

11. ऐ. पी. जे. अब्दुल Kalam 25 जुलाई 2002 – 25 जुलाई 2007

12. प्रतिभा पाटिल 25 जुलाई 2007 – 25 जुलाई 2012

13. प्रणब मुखर्जी 25 जुलाई 2012 – 25 जुलाई 2017

14. राम नाथ कोविन्द 25 जुलाई 2017 – 25 जुलाई 2022

15. द्रौपदी मुर्मू 25 जुलाई 2022 – अब तक

राष्ट्रपति से संबंधित अनुच्छेद (Rashtrapati Se Sambandhit Anucched)

52 भारत के राष्ट्रपति

53 संघ की कार्यपालक शक्ति

54 राष्ट्रपति का चुनाव

55 राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका

56 पुनर्चुनाव के लिए अर्हता

57 राष्ट्रपति चुने जाने के लिए योग्यता

58 राष्ट्रपति कार्यालय की दशाएँ

59 राष्ट्रपति का कार्यकाल

60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण

61 राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया

62 राष्ट्रपति पद की रिक्ति की पूर्ति के लिए चुनाव कराने का समय

65 उप-राष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना

71 राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित मामले

72 राष्ट्रपति की क्षमादान इत्यादि की शक्ति तथा कतिपय मामलों में दंड का स्थगन, माफी अथवा कम कर देना

74 मंत्रिपरिषद का राष्ट्रपति को परामर्श एवं सहयोग प्रदान करना ।

75 मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान, जैसे- नियुक्ति, कार्यकाल, वेतन इत्यादि

76 भारत के महान्यायवादी

77 भारत सरकार द्वारा कार्यवाही का संचालन

78 राष्ट्रपति को सूचना प्रदान करने से संबंधित प्रधानमंत्री के दायित्व इत्यादि

85 संसद के सत्र, सत्रावसान तथा भंग करना

111 संसद द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति प्रदान करना

112 संघीय बजट (वार्षिक वित्तीय विवरण)

123 राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

143 राष्ट्रपति की सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने की शक्ति

राष्ट्रपति के कार्य क्या है | Rashtrapati Ke Karya

FAQ

भारत के राष्ट्रपति को शपथ कौन दिलाता है?

मुख्य न्यायाधीश।

भारत का सबसे ऊंचा पद कौन सा है?

राष्ट्रपति।

राष्ट्रपति किसे कहते हैं?

राष्ट्रपति राष्ट्र का औपचारिक प्रमुख होता है।

राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाने पर क्या होता है?

राष्ट्रपति की मृत्यु होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति बन जाएगा।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन है?

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद।

राष्ट्रपति को अंग्रेजी में क्या कहते हैं?

President

भारत में राष्ट्रपति को कौन हटाता है?

संसद महाभियोग प्रस्ताव पारित करके हटा सकती है।

राष्ट्रपति की नियुक्ति कितने वर्ष की होती है?

पाँच वर्ष

भारत में लगातार दो बार राष्ट्रपति कौन बना?

राजेंद्र प्रसाद

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