जलवायु परिवर्तन | Jalvayu Parivartan| जलवायु परिवर्तन PDF

जलवायु परिवर्तन क्या है? जलवायु परिवर्तन (Jalvayu Parivartan) के कारण एवं परिणाम, जलवायु परिवर्तन से बचने के उपाय, जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव, जलवायु परिवर्तन इन हिंदी।

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जलवायु परिवर्तन (Jalvayu Parivartan)

जलवायु परिवर्तन को समझने से पहले हमें यह समझ लेना अतिआवश्यक है कि आखिर जलवायु क्या होती है? सामान्यतः जलवायु का अभिप्राय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है।

अतः किसी क्षेत्र विशेष में मुख्य रूप से औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो वह जलवायु परिवर्तन कहलाता हैं।

जलवायु परिवर्तन को दुनिया के किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि जलवायु परिवर्तन के वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह देखने को मिलता है कि इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।

पृथ्वी के इतिहास में जलवायु अनेक बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की बहुत सी घटनाएँ सामने आई हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि आज के समय में पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम प्रतीत हो सकता है, किन्तु इस परिवर्तन की वजह से मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, इसके फलस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रमाण

जलवायु परिवर्तन को सिद्ध करने के लिए बहुत से प्रमाण भूगर्भिक अभिलेखों में मिलते हैं जैसे

हिम युग और अंतर हिम युगों में क्रमशः परिवर्तन की प्रक्रिया

हिम नदियों का आगे बढ़ना और पीछे हटना

हिमानी निर्मित झीलों में अवसादों का निक्षेप

उष्ण एवं शीत युगों का होना

वृक्षों के तनों में वलय क्रमशः आद्र एवं शुष्क युगों का संकेत है

अभिनव पूर्व काल में जलवायु परिवर्तन

पिछले कुछ दशकों में जलवायु तथा मौसम संबंधी अल्पकालिक घटनाएं घटी हैं 20 सी सदी में 1990 का दशक सर्वाधिक गर्म था और इसी दशक में भयंकर बाढ़ में भी आई थी अफ्रीका में सहारा मरुस्थल के दक्षिण में स्थित साहिल प्रदेश में 1967 से 1977 के दौरान भयंकर सूखा पड़ा 1930 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पश्चिम भाग में भीषण सूखा पड़ा इस क्षेत्र को धूल का कटोरा कहते हैं यूरोप में कई बार आद्र और शुष्क जलवायु के योग आते रहे हैं

जलवायु परिवर्तन के कारण

ग्रीनहाउस गैसें

पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की एक परत चढ़ी हुई है, इस परत में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं।

वायुमंडल में उपस्थित ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होती तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाता।

आज के युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ रहा है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।

मुख्य ग्रीनहाउस गैसें

कार्बन डाइऑक्साइडः यह सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है और इसका उत्सर्जन प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से होता है। कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने के कारण होता है। आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक क्रांति के बाद कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वैश्विक स्तर पर 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।

मीथेनः जैव पदार्थों के अपघटन से मीथेन का उत्सर्जन होता है। उल्लेखनीय है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड से भी अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है, परंतु वायुमंडल में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा काफी कम है।

क्लोरोफ्लोरोकार्बनः इसका प्रयोग मुख्यतः रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में किया जाता है जिसकी वजह से ओज़ोन परत पर इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

जलवायु पैटर्न में बदलाव – जलवायु पैटर्न में बदलाव विभिन्न प्रकार से हो सकता है, और वहां उत्सर्जन जैसी गतिविधियों के माध्यम से जलवायु प्रभावित होती है, पेट्रोल और प्राकृतिक गैसों का उपयोग ग्रीनहाउस गैस के प्रमुख कारण हैं, पशुपालन जैसे गायों सुअरों और मुर्गियों की संख्या में बढ़ोतरी भी जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदाई है क्योंकि इन गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों का बड़ी मात्रा में उत्सर्जन होता है, इन गैसों ने न केवल तापमान बढ़ाया है बल्कि जलवायु चक्र को भी बुरी तरह प्रभावित किया है

समुद्रीय जल में वृद्धि-ग्लेशियरों के पिघलने के कारण महासागर गर्म हो रहे हैं तथा महासागरों का जल स्तर खतरनाक अनुपात में बढ़ रहा है जो की समुद्रीय तटीय इलाकों में तबाही का कारण बन सकता है

वनों की कटाई-बन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है वे पर्यावरण पर ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं और इस प्रकार पृथ्वी को अपने मौसम चक्र को बनाए रखने में मदद करते हैं मनुष्य द्वारा अपने निजी स्वार्थ बस जंगलों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, जो कि पृथ्वी के पर्यावरण और इसकी जलवायु के लिए बड़ा खतरा बन रही हैं

प्राकृतिक कारण- प्राकृतिक कारणों में वे कारण हैं जो प्राकृतिक रूप से अपने आप ही हो जाते हैं जैसे, भूकंप, ज्वालामुखी का फटना, आदि ज्वालामुखी फटने से उसमें से जो लव निकलता है, उसके किसी जल स्रोत में जाने या कहीं भी जाने से वहां प्रदूषण फैल जाता है और जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण भी प्रदूषण ही है

कारखाने और अन्य प्रदूषण-कारखाने को सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला माना जाता है, क्योंकि इसके आसपास रहने से सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है,, इसके अलावा प्रदूषण फैलाने वालों में वाहनों को लिया जाता है, यह सभी वायु प्रदूषण फैलाने में अपना योगदान देते हैं, इसके अलावा भी कई ऐसे उदाहरण हैं जो वायु प्रदूषण के कारक बनते हैं वायु प्रदूषण से गर्मी बढ़ती है और गर्मी बढ़ने से जलवायु में परिवर्तन होता है

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग का मतलब पृथ्वी के वायुमंडल की तापमान में हो रही लगातार वृद्धि से है, जिसका प्रमुख कारण ग्रीनहाउस गैसों की उत्सर्जन में वृद्धि होना है

प्रमुख ग्रीनहाउस गैस-

कार्बन डाइऑक्साइड

क्लोरोफ्लोरोकार्बन

मीथेन

नाइट्रस ऑक्साइड

ओजोन

कार्बन डाइऑक्साइड

यह सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जिसकी मात्रा में वृद्धि निम्नलिखित कर्म से हुई है

नगरीकरण

औद्योगिकरण

जैव ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस की जलने

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

उच्च तापमान

पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेज़ी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। गर्मी से संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। एक शोध में पाया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो सदी के अंत तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है।

वर्षा के पैटर्न में बदलाव

पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर आवश्यकता से बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर इतनी काम वरिष्ठ हो रही है कि सूखे की संभावना बन गई है।

समुद्र जल के स्तर में वृद्धि

वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता जा रहा है जिसके कारण समुद्र के आस-पास स्थित द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ जाता है। मालदीव जैसे छोटे देशों में रहने वाले लोग इन परिस्थितियों को देखते हुए पहले से ही वैकल्पिक स्थलों की तलाश में हैं।

वन्यजीव प्रजाति का नुकसान

तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे।

रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान

जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दशक से अब तक लगभग 150,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

जंगलों में आग

जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं। ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च के आँकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से अब तक ब्राज़ील के अमेज़न वन कुल 74,155 बार वनाग्नि का सामना कर चुके हैं। साथ ही यह भी सामने आया है कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना बीते वर्षो में 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।

स्वास्थ्य

जलवायु परिवर्तन के कारण जनसंख्या के स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं। यदि वैश्विक जलवायु परिवर्तन अपने वर्तमान पथ पर जारी रहता है, तो यह प्रभाव भविष्य के दशकों में संभावित रूप से बढ़ जाएंगे।

स्वास्थ्य जोखिमों की तीन मुख्य श्रेणियों में शामिल हैंः

1. प्रत्यक्ष-अभिनय प्रभाव (जैसे गर्मी की लहरों, प्रवर्धित वायु प्रदूषण और भौतिक मौसम आपदाओं के कारण),

2.पारिस्थितिक तंत्र और संबंधों में जलवायु संबंधी परिवर्तनों के माध्यम से मध्यस्थता वाले प्रभाव (जैसे फसल की पैदावार, मच्छर पारिस्थितिकी, समुद्री उत्पादकता),

3.दरिद्रता, विस्थापन, संसाधन संघर्ष (जैसे पानी), और आपदा के बाद मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित अधिक विसरित (अप्रत्यक्ष) परिणाम।

जलवायु परिवर्तन से बच्चों के कुपोषण, डायरिया से होने वाली बीमारियों से होने वाली मौतों और अन्य संक्रामक रोगों के प्रसार को कम करने की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय प्रगति को धीमा करने, रोकने या उलटने का खतरा है।

जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से मौजूदा, अक्सर भारी, स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा देता है, खासकर दुनिया के गरीब हिस्सों में। मौसम की स्थिति में बदलाव पहले से ही विकासशील देशों में गरीब लोगों के स्वास्थ्य पर विभिन्न प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं,

जलवायु परिवर्तन का परिणाम

जलवायु परिवर्तन की कारण संपूर्ण पृथ्वी प्रभावित होती है और अभूतपूर्व परिणाम नजर आते हैं जैसे:

हिम नदियां पिघल जाएगी

नदियों में बाढ़ की मात्रा बढ़ जाएगी

समुद्र का जल स्तर 15 से 20 मीटर ऊंचा हो सकता है

तटीय भाग और बंदरगाह डूब कर नष्ट हो जाएंगे

वाष्पन तथा वर्ष के प्रति रूपों में परिवर्तन आएगा

मानव में नई-नई बीमारियां उत्पन्न होगी

पौधों की नई-नई बीमारियां उत्पन्न होगी

नाशक जीवों की समस्याएं खड़ी होगी

ओजोन छिद्र में विस्तार होगा

ITCZ उत्तर की ओर विस्थापित होगा

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की शक्ति और उसकी आवृत्ति में वृद्धि होगी

वनस्पति, मृदा, कृषि उत्पादकता आदि प्रभावित होगी

विश्व में खाद्य आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा

बाढ़ और सुख की आवृत्ति और प्रवृत्ति में अनियमित आएगी

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

कृषि पर प्रभाव-कृषि में जलवायु परिवर्तन का संभावित प्रभाव दिखाई देता है, जलवायु परिवर्तन न केवल फसलों के उत्पादन को प्रभावित करेगा बल्कि उनकी गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा, पोषक तत्वों और प्रोटीन का अभाव अनाज में पाया जाएगा जिससे कि संतुलित आहार लेने के बाद भी मनुष्यों की स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा

मिट्टी पर प्रभाव-कृषि के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन का मिट्टी पर भी प्रभाव पड़ता है,, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण मिट्टी पहले से ही प्रदूषित हो रही है, अब तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी की नमी और उर्वरता शक्ति प्रभावित होगी, इसकी अंतर्गत मिट्टी में लवणता की वृद्धि होगी

जल संसाधनों पर प्रभाव-जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों पर भी इसका व्यापक असर देखने को मिलता है, जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ जाएगी

पशुओं पर प्रभाव- फसलों और पेड़ों के साथ जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पशुओं और जानवरों पर भी देखा जा सकता है, तापमान में बढ़ोतरी जानवरों के विकास, स्वास्थ्य और प्रजनन को भी प्रभावित करती है, गर्मी के कर्म में तनाव बढ़ जाता है जिससे उनकी शारीरिक क्रियाएं अवरुद्ध हो जाती हैं, तथा रोग से ग्रसित होने की संभावना भी बढ़ जाती है, यह अनुमान है कि तापमान में वृद्धि के कारण अगले कुछ वर्षों में पशुओं में गर्भधारण की दर बहुत कम हो सकती है

जैव विविधता को खतरा– जलवायु परिवर्तन का बहुत व्यापक प्रभाव जैव विविधता पर भी पढ़ रहा है, जैव विविधता पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है यदि जलवायु परिवर्तन की घटना को नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया गया तो कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं

वर्षा पर प्रभावजलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरुप दुनिया के मानसूनी क्षेत्र में वर्ष में वृद्धि होगी जिससे बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएं पैदा होगी जल की गुणवत्ता में गिरावट आएगी ताजे जल की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे है जहां तक भारत का सवाल है, मध्य तथा उत्तरी भारत में कम वर्षा होगी जबकि इसके विपरीत देश की पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पश्चिमी राज्यों में अधिक वर्षा होगी परिणाम स्वरुप बरसात जल की कमी से मध्य तथा उत्तरी भारत में सूखे जैसी स्थिति होगी जबकि पूर्वोत्तर तथा दक्षिण पश्चिमी राज्यों में अधिक वर्षा के कारण बाढ़ जैसी समस्या होगी दोनों ही स्थितियों में कृषि उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा सुख और बाढ़ के दौरान पीने और कपड़े धोने के लिए स्वच्छ जल की उपलब्धता कम हो जाएगी जल प्रदूषण होगा तथा जल निकास की व्यवस्थाओं को हानि पहुंचेगी

जलवायु परिवर्तन को रोकने हेतु प्रयास

ऐसा नहीं है कि इन सब परिणाम के बीच मनुष्य ने कुछ उपाय नहीं किया है हालांकि यह नाकाफी साबित हुए हैं कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि के साथ ही यह एक वैश्विक चिंता बन गई है जिसे निम्नलिखित सम्मेलनों और संधिया द्वारा पूरे विश्व के द्वारा प्रयास किया गया :

अंतर्राष्ट्रीय मानव पर्यावरण सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन: पर्यावरण का मैग्नाकार्टा) 1972 संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की स्थापना, 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय, मानव विकास और पर्यावरण के मध्य संघर्ष को कम करने की दिशा में किया गया प्रथम प्रयास

हैलेंसकी सम्मेलन 1974: सामुद्रिक पर्यावरण की सुरक्षा

लंदन सम्मेलन 1975: समुद्र में कचरे की निस्तारण का प्रतिबंध

यूरोपीय वन्य जीव व प्राकृतिक निवास क्षेत्र संरक्षण सम्मेलन 1979: प्रजाति संरक्षण

वियना सम्मेलन 1985: ओजोन परत का संरक्षण

मॉन्ट्रियल सम्मेलन 1987: ओजोन परत की संरक्षण के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय समझौता 16 सितंबर 1987 को हुआ 16 सितंबर को ओजोन दिवस मनाने का निर्णय

रियो सम्मेलन (पृथ्वी सम्मेलन) 1992: पर्यावरण विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंडा 21 स्वीकृत किया गया, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की स्थापना

नैरोबी घोषणा पत्र 1997: अंतरराष्ट्रीय संधियों का प्रभावी क्रियान्वयन

क्योटो सम्मेलन 1997: ग्रीन हाउस गैसों की पहचान तथा भूमंडलीय तापन को कम करना, वर्ष 1990 के स्तर में पांच प्रतिशत की कटौती का निर्णय

जोहानिसबर्ग (पृथ्वी + 10 सम्मेलन) 2002: सतत विकास पर विशेष बल, विश्व एक जुटता कोष की स्थापना पर सहमति

मॉन्ट्रियल सम्मेलन 2005: विकसित देशों द्वारा वर्ष 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर वर्ष 1990 के स्तर तक लाना

कोपेनहेगन सम्मेलन 2009: विकसित और औद्योगिक राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2020 तक ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन में भारी कटौती का प्रावधान, कम कार्बन अर्थव्यवस्था की परिकल्पना

कानकुन सम्मेलन 2010: हरित जलवायु कोष स्थापित करने का निर्णय

डरबन सम्मेलन (CoP-17) 2011: डरबन प्लेटफार्म के अंतर्गत ग्रीन क्लाइमेट फंड की संकल्पना

दोहा सम्मेलन (CoP-18) 2012: क्लीन डेवलपमेंट मेकैनिज्म की अंतर्गत प्रदूषण कम करने का प्रयास

रियो 20 सम्मेलन 2012: पृथ्वी सम्मेलन के दो दशक पूरे होने के उपलक्ष में संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास सम्मेलन, जिसमें द फ्यूचर वी वांट मसौदा प्रस्तुत किया गया, हरित व्यवस्था पर बल

पेरिस सम्मेलन (CoP-21) 2015: कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों हेतु कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन एक भीषण समस्या है कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग मानव समाज के लिए एक बड़ा खतरापन कर उभर रहा है आज तक मनुष्य इस तरह की बड़ी पर्यावरण संकट का सामना करने के लिए मजबूर नहीं हुआ अगर हम ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाते हैं तो हम पृथ्वी पर जीवन को बचाने में सक्षम नहीं हो पाएंगे

FAQ

जलवायु परिवर्तन क्या होता है?

जलवायु परिवर्तन का आशय दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में होने वाली जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तनों से है।

जलवायु परिवर्तन क्या है दो उदाहरण दीजिए?

सामान्य शब्दों में दशकों, सदियों या उससे अधिक समय में किसी स्थान विशेष और या पूरी धरती की जलवायु में आने वाला दीर्घकालिक बदलाव ही जलवायु परिवर्तन है। उदाहरण के लिए जहां बाढ़ आती थी वहां सूखा पड़ रहा है। जब सर्दी पड़नी चाहिए थी तब गर्मी हो रही है। तापमान में बदलाव आ रहा है।

जलवायु परिवर्तन के क्या प्रभाव?

जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप बाढ़, सूखा तथा आँधी-तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारम्बारता में वृद्धि के कारण अनाज उत्पादन में गिरावट दर्ज होगी। जोकि कुपोषण का कारण बनेगी।

जलवायु परिवर्तन के 5 कारण क्या हैं?

लजवायु परिवर्तन के 5 प्रमुख कारण भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, पृथ्वी का झुकाव, समुद्री तूफान, बाढ़, सूखा आदि।

जलवायु परिवर्तन का सबसे मुख्य कारण क्या है?

जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मनुष्य ही है। सामान्यतः जलवायु में परिवर्तन कई वर्षों में धीरे धीरे होता है। लेकिन मनुष्य के द्वारा पेड़ पौधों की लगातार कटाई और जंगल को खेती या मकान बनाने के लिए उपयोग करने के कारण इसका प्रभाव जलवायु में भी पड़ने लगा है।

जलवायु परिवर्तन की खोज कब हुई थी?

1896 में, स्वीडिश वैज्ञानिक स्वेन्ते अरहेनियस के एक मौलिक पेपर ने पहली बार भविष्यवाणी की थी कि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में परिवर्तन से ग्रीनहाउस प्रभाव के माध्यम से सतह के तापमान में काफी बदलाव आ सकता है। 1938 में, गाइ कॉलेंडर ने पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ा।

जलवायु परिवर्तन की प्रमुख समस्या क्या है?

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएँ पैदा होंगी। जल की गुणवत्ता में गिरावट आएगी तथा पीने योग्य जल की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ेंगे।

जलवायु परिवर्तन में 4 प्रमुख योगदानकर्ता कौन से हैं?

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के प्राथमिक स्रोत बिजली और गर्मी (31%), कृषि (11%), परिवहन (15%), वानिकी (6%) और विनिर्माण (12%) हैं।

जलवायु परिवर्तन के लिए कौन जिम्मेदार होता है?

जलवायु परिवर्तन का मुख्य जिम्मेदार कारण तेल, गैस, और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना है।

जलवायु परिवर्तन के 3 मुख्य प्राकृतिक कारण क्या हैं?

जलवायु पर प्राकृतिक कारणों में ज्वालामुखी विस्फोट, पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन और पृथ्वी की पपड़ी में बदलाव शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन से मनुष्य कैसे प्रभावित होते हैं?

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में प्रमुख रूप से तापमान में वृद्धि, वर्षा में परिवर्तन, कुछ चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति या तीव्रता में वृद्धि और समुद्र के स्तर में वृद्धि शामिल है। ये प्रभाव हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन, हमारे द्वारा पीने वाले पानी, जिस हवा में हम सांस लेते हैं और जिस मौसम का हम अनुभव करते हैं, उसे प्रभावित करके हमारे स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं।

जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका तो क्या होगा?

जलवायु परिवर्तन के करण ग्लोबल वार्मिंग की घटना बढ़ जाएगी जिससे अगली एक सदी में एक अरब लोग इसके कारण समय से पहले मर जाएंगे और इसमें गरीब तबके के लोग ज्यादा होंगे

जलवायु के जनक कौन है?

हंबोल्ट को जलवायु विज्ञान का जनक कहा जाता है।

जलवायु परिवर्तन में भारत का कौन सा स्थान है?

भारत आठवें स्थान पर है।

जलवायु परिवर्तन आंदोलन किसने शुरू किया था?

राचेल कार्सन ने 1962 में पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत की थी।

जलवायु परिवर्तन कानून सबसे पहले किस देश में लागू हुआ?

न्यूजीलैंड (New Zealand) पहला ऐसा देश है जो जलवायु परिवर्तन (Climate Change) संबंधी कानून बना रहा है.

जलवायु परिवर्तन की खोज किस महिला ने की थी?

जलवायु परिवर्तन पर वर्तमान चिंताओं से बहुत पहले, 1856 में, यूनिस न्यूटन फूटे नाम की एक अमेरिकी महिला यह सिद्धांत देने वाली पहली व्यक्ति थी कि उच्च कार्बन डाइऑक्साइड स्तर के कारण ग्रह गर्म हो जाएगा।

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