लोकतंत्र क्या है | लोकतंत्र की विशेषताएं | Loktantra Kya Hai

लोकतंत्र का अर्थ (Loktantra Ka Kya Arth Hai) एवं अवधारणा, लोकतंत्र की विशेषतायें, लोकतंत्र क्या है (Loktantra Kya Hai) लोकतंत्र के आधारभूत तत्व, लोकतंत्र के प्रकार, लोकतंत्र के गुण, लोकतंत्र के दोष, लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ क्या है।

लोकतंत्र क्या है | Loktantra Kya Hai

अब्राहम लिंकन के अनुसार, “लोकतन्त्र शासन, वह शासन है जिसमें शासन जनता का जनता के द्वारा तथा जनता के लिए हो।”         

लोकतंत्र की परिभाषा (Loktantra Ki Paribhasha)

लोकतन्त्र शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द डेमोक्रेसी’ का हिन्दी रूपान्तरण है। डेमोक्रेसी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है डेमोस + क्रेटिया जिनका अर्थ है जनता तथा शक्ति अर्थात् “जनता की शक्ति । अतः प्रजातन्त्र का अर्थ प्रजा के हाथों में शक्ति से है।

उन्नसवीं शताब्दी में लोकतन्त्र का परम्परागम सिद्धान्त एक आदर्श के रूप में उभरा। इसलिये यह धारणा कायम हुई कि यह सिद्धान्त एक आदर्श व्यक्ति, आदर्श राजय, आदर्श समाज और आदर्श अर्थनीति का समर्थन करता है तथा यह जनता के लिये तथा द्वारा शासन है।

अब्राहम लिंकन के अनुसार, “लोकतन्त्र शासन, वह शासन है जिसमें शासन जनता का जनता के द्वारा तथा जनता के लिए हो।”

ब्राइड के अनुसार, “लोकतन्त्र शासन का वह प्रकार है जिसमें राज्य के शासन की शक्ति किसी विषेष वर्ग या वर्गों में निहित न होकर सम्पूर्ण जनसमुदाय में निहित है।”

लोकतंत्र के विभिन्न रूप (Loktantra Ke Vibhinn Roop)

1. प्रजातन्त्र शासन के रूप में – प्रजातन्त्र उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें जनता स्वयं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में समूची जनता के हित की दृष्टि से शासन करती है। इसमें सरकार एक साधन मात्र होती है। सरकार का उद्देष्य सार्वजनिक हितों की रक्षा करना होता है तथा सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

2. प्रजातन्त्र राज्य के रूप में – राज्य के रूप में प्रजातन्त्र का तात्पर्य उस राज्य से होता है जिसमें राजसत्ता जनता में निहित होती है और उसका उपयोग जनता अपनी इच्छा की सरकार का रूप निर्धारित करके करती है।

3. प्रजातन्त्र समाज के रूप में – समाज के रूप में प्रजातन्त्र से तात्पर्य उस समाज से

है जिसमें सब व्यक्ति समान समझे जाते हैं। जाति, धर्म, नस्ल, लिंग, सम्पत्ति का भेदभाव नहीं होता और सबों समान अवसर प्राप्त होते है। इस प्रकार समानता प्रजातन्त्र का आधार है।

4. प्रजातन्त्र नैतिकता के रूप में – नैतिकता के रूप में प्रजातन्त्र मनुष्यों को वास्तविक ज्ञान कराता है। वह बराबरी के नैतिक सिद्धान्त पर आधारित है ।

5. आर्थिक प्रजातन्त्र – सच्चे प्रजातन्त्र के लिये राजनीतिक समानता ही पर्याप्त नहीं है। वास्तविक समानता से तात्पर्य आर्थिक समानता से होना चाहिये । प्रायः देखा जाता है कि राजनीतिक प्रजातन्त्र आर्थिक अल्पतन्त्र में परिवर्तित हो जाता है क्योंकि राजनीतिक राजसत्ता आर्थिक सत्ताधारी व्यक्तियों के हाथ में रहती है। अतः यह मानना पड़ेगा कि समाजवाद द्वारा ही ऐ सच्चे तथा सार्थक प्रजातन्त्र का निर्माण किया जा सकता है।

लोकतंत्र की विशेषतायें (Loktantra Ki Visheshta)

लोकतंत्र शासन में निम्नलिखित विषेषतायें पाई जाती हैं-

1. प्रभु शक्ति जनता के हाथों में पाई जाती है।

2. सरकार का निर्माण समस्त जनता द्वारा होता है। अतएव सरकार में समस्त जनता का प्रतिनिधित्व होता है।

3. सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। जनता सरकार को अपदस्थ सकती है यदि सरकार अपने दायित्वों का पालन करने में असफल हो ।

4. समस्त नागरिकों को समान समझा जाता है और समानता के सिद्धान्त का ही अनुकरण किया जाता है।

5. लोकतन्त्र शासन बहुमत पर आधारित है। निर्वाचित सदस्य उस समय तक ही कार्य कर सकते हैं जब तक बहुमत उनके पक्ष में रहे।

6. योग्यता पर विशेष बल दिया जाता है, जो व्यक्ति जिस योग्य होता है, उसको उसी के अनुसार पद प्रदान किया जाता है।

7. धन एवं सम्पत्ति के समान वितरण पर विशेष बल दिया जाता है।

8. स्थानीय संस्थाओं के विकास के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है।

लोकतंत्र के आधारभूत तत्व (Loktantra Ke Adhaarbhut Tatva)

पीटर एच० मरकल ने प्रजातन्त्र के निम्नलिखित तत्वों का वर्णन किया है-

1. विचारों के आदान-प्रदान द्वारा शासन

2. बहुमत का शासन

3. अल्पमत के अधिकारों की मान्यता

4. संवैधानिक शासन

5. समानता का सिद्धान्त

6. स्वतन्त्रता लोकतन्त्र की आत्मा है

7. लोकमत पर आधारित

लोकतंत्र के प्रकार (Loktantra Ke Prakar)

प्रजातन्त्र मुख्य रूप से दो प्रकार का होता हैं-

(1) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र – जब जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लिया जाता है तो उसे प्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहा जाता है अर्थात् प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में राज्य की इच्छा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से एक सभा में प्रकट की जाती है न कि निर्वाचन प्रतिनिधियों द्वारा ।

(2) अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र – जब जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन में सम्बन्धी कार्यों को करती है तो इसे अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहा जाता है।

(i) इस शासन में राज्य की इच्छा जनता के निर्वाचन प्रतिनिधियों द्वारा प्रकट की जाती है । नागरिक देश के शासन में प्रत्यक्ष भाग नहीं लेते।

(ii) जनता यथार्थ में विधान मण्डलों के सदस्यों को तथा कार्यपालिका के कुछ सदस्यों को चुनती है। कर्मचारियों का चुनाव नहीं होता। इनकी नियुक्ति कार्यपलिका करती है।

(iii) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में राज्य तथा शासन में कोई भेद नहीं रहता । परन्तु अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में राज्य तथा शासन दोनों अलग-अलग रहते हैं ।

लोकतंत्र के गुण (Loktantra Ke Gun)

आधुनिक युग में लोकतन्त्र को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली माना जाता है। इस शासन-व्यवस्था के प्रमुख गुण निम्न है-

(1) लोक-कल्याणकारी शासन- लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली में जनता के प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाता है। जनता के प्रतिनिधि जनता की इच्छाओं, भावनाओं और आवश्यकताओं से पूर्व परिचित होते हैं। साथ की उन्हें आगामी चुनाव में सफलता के लिए जनता पर निर्भर रहना पड़ता ह । अतः उनके द्वारा लोक-कल्याणकारी कानूनों का ही निर्माण किया जाता है।

(2) कुशल शासन – अन्य शासन व्यवस्थाओं की अपेक्षा लोकतन्त्र सर्वाधिक कुशल शासन है। इसमें सबसे अधिक शीघ्रतापूर्वक तथा आवश्यक रूप से जनहित के कार्य किये जाते हैं।

(3) सार्वजनिक शिक्षण – लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में जनता को प्रशासनिक, राजनीतिक तथा सामाजिक शिक्षण प्राप्त होता है। लोकतन्त्र में जनता का मताधिकार प्राप्त होता है तथा जनता का शासन पर नियन्त्रण होता है।

(4) उत्तरदायी शासन – लोकतन्त्र में शासन जनता के प्रति उत्तरदायी होता है। विरोधी सदस्य, जागरूक प्रेस तथा जनमत का नियन्त्रण, उसे सदैव सजग करते रहते हैं । लोकतन्त्र में शासन पर संविधान, संसद तथा अन्तिम रूप से जनता का नियन्त्रण होता है।

(5) स्वतन्त्रता की सुरक्षा – स्वतन्त्रता प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। लोकतन्त्र इस बात पर विश्वास करता है कि सभी लोगों को विचार, भाषण, लेखन, सम्मेलन, संगठन और आवगमन की अधिक से अधिक स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होनी चाहिए। ये स्वतन्त्रताएँ मनुष्य के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होती हैं। अन्य शासन व्यवस्थाओं की अपेक्षा लोकतन्त्र में मनुष्यों को सर्वाधिक स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होती हैं।

(6) सममानता का पोषण – सानता लोकतन्त्र का आधार सतम्भ है। लोकतन्त्र में सभी व्यक्तियों का समान राजनीतिक अवसर प्राप्त हाते हैं। सभी व्यक्तियों को समान राजनीतिक अवसर प्राप्त होते हैं। सभी व्यक्तियों को समान रूप से शासन में भाग दिया जाता है तथा सभी का समान रूप से लाभ प्राप्त होते हैं लोकतन्त्र समानता पर आधारित सर्वाधिक श्रेष्ठ शासन व्यवस्था है।

(7) क्रान्ति से सुरक्षा – लोकतन्त्र में क्रान्ति का भय नहीं रहता है। यदि शासक वर्ग द्वारा जनता की इच्छाओं के अनुरूप कार्य नहीं किया जाता है या अनुचित आचरण किया जाता है ता जनता उन्हें एक निष्चित समय के बाद और विषेष परिस्थितियों में पहले भी हटा सकती है। अतः क्रांति की सम्भावना ही नहीं रहती ।

(8) जनता का नैतिक उत्थान- लोकतन्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व और उनके नैतिक चरित्र को उच्चता प्रदान करता है। यह जनता को राजनीतिक शक्ति प्रदान करता है जिससे जनता में आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना उत्पन्न होती है।

(9) देशभक्ति की भावना – लोकतन्त्र में सभी व्यक्तियों को शासन कार्यों में भाग लेने का अधिकार होता है। अतः प्रत्येक नागरिक अपने आपकों शासन का भागीदार समझता है। फलस्वरूप नागरिकों में शासन तथा देश के प्रति श्रद्धा व लगाव की भावना उत्पन्न होती है, जिससे देशभक्ति की भावना का उदय होता है।

(10) सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व – लोकतन्त्र का यह विशिष्ट गुण है कि इसमें बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है क्योंकि इसमें जनता के प्रतिनिधियों का शासन होता है। लावेल के अनुसार, “पूर्ण लोकतन्त्र में कोई भी यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिला।”

(11) सभी को प्रतिभा के विकास के समान अवसर – लोकतन्त्र में सभी व्यक्तियों का मतदान के आधार पर प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित होने और सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार होता है। इसमें सभी व्यक्ति अपनी योग्यताओं का परिचय दे सकते हैं और अपनी प्रतिभा का विकास कर सकते हैं । लोकतन्त्र में सभी को अपनी प्रतिभा के विकास का अवसर प्राप्त होता है।

(12) सामाजिक गुणों का विकास- किसी देश की शासन व्यवस्था का नागरिकों के व्यवहार पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। शक्ति पर आधारित तानाषाही व्यवस्था लोगों में संघर्ष की भावना उत्पन्न करती है तो जन- इच्छा पर आधारित लोकतन्त्र नागरिकों में सहिष्णुता, उदारता, सहानुभूति, स्नेह, व्यवहार कुशलता, विचार विनिमय और समझौते की भावना उत्पन्न करता है।

(13) विज्ञान का श्रेष्ठ प्रोत्साहक – स्वतन्त्रता के अभाव में विज्ञान का विकास असम्भव है। लोकतन्त्र में विज्ञान का बहुत अधिक अच्छे रूप में विकास सम्भव है क्योंकि राजतन्त्र और कुलीनतन्त्र की अपेक्षा लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता का वातावरण विद्यमान रहता है।

(14) विश्व – शान्ति का समर्थक- वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवष्यकता है – विष्व शान्ति की स्थापना । राजतन्त्र, सैनिकतन्त्र, फासिस्ट तानाशाही सरकारें तथा साम्यवादी सरकारें शक्ति पर आधारित विस्तारवादी नीति में विश्वास करती हैं जबकि लोकतन्त्रीय सरकारें सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास करती हैं। विश्व बन्धुत्व पर आधारित लोकतन्त्र द्वारा विश्व – शान्ति की स्थापना की जा सकती है।

लोकतंत्र के दोष (Loktantra Ke Dosh)

लोकतन्त्र की आलोचना करते हुए टेलीरेण्ड इसे ‘दुष्टों कर कुलीनतन्त्र कहते हैं और लुडाविसी के अनुसार, “प्रजातन्त्र मृत्यु की ओर ले जाता है।” लोकतन्त्र में निम्नलिखित दोप पाये जाते हैं-

(1) अयोग्यता की पूजा – लोकतन्त्र इस मान्यता पर आधारित हाता है कि प्रत्यक व्यक्ति का केवल एकमत ही दिया जाना चाहिए। लेकिन सभी व्यवित याग्यता की दृष्टि से समान नहीं होते हैं। इस प्रकार लोकतन्त्र में गुण की अपेक्षा संख्या का अधिक महत्व दिया जाता है। कार्लाइस के अनुसार, “विश्व में एक योग्य व्यक्ति के साथ लगभग 9 मूर्ख होते हैं। सभी को समान राजनीतिक शक्ति देने का परिणाम मूर्खों की सरार की स्थापना हाता है।”

(2) दल प्रणाली का अहितकर प्रभाव – यद्यपि राजनीतिक दलों का निर्माण सामान्यतया राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक कार्यक्रम के आधार पर किया जाता है किन्तु व्यवहार में ये राजनीतिक दल येन केन प्रकारेण शासन – शक्ति प्राप्त करना ही अपना लक्ष्य निष्चित कर लेते हैं। राजनीतिक दलों ने वर्तमान में चुनावों को भ्रष्ट कर दिया है। चुनावों के समय राजनीतिक दलों के द्वारा किये गये विसेले प्रचार के कारण सम्पूर्ण देश का वातावरण ही विपावत हो जाता है।

(3) भ्रष्ट शासन-व्यवस्था – सैद्धान्तिक स्थिति चाहे कुछ भी हो किन्तु व्यवहार में लोकतन्त्रीय शासन बहुत अधिक भ्रष्ट होता है। निर्वाचन में सत्तारूढ़ दल के सहायक लोगों को शासन की ओर से अनेक लाभ पहुँचाये जाये जाते हैं। जनता के प्रतिनिधियों द्वारा लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए अनेक अनुचित कार्य किये जाते हैं।

(4) सार्वजनिक धन और समय का अपव्यय – लोकतन्त्र में समय और धन दानों का अत्यधिक अपव्यय होता है। कानून निर्माण की लम्बी और जटिल प्रक्रिया के कारण कानूनों के निर्माण में वर्षों लग जाते हैं और कई बार तो कानून पारित होने तक कालातीत हो जाते हैं ।

(5) धनवानों का शासन – लोकतन्त्र में राजनीतिक शक्ति चुनाव द्वारा प्राप्त की जाती है। वर्तमान समय में चुनाव कार्य बहुत खर्चीला हो गया है जिससे निर्धन व्यक्ति चुनाव जीतने की उम्मीद ही नहीं कर सकता। जब धनी व्यक्ति चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुँचता है तब उसके द्वारा अपने वर्ग विशेष के हितों के अनुरूप ही कानूनों का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार लोकतन्त्र धनवानों का ही शासन होता है।

(6) अनुत्तरदायी शासन – लोकतन्त्र की विशेषता है- उत्तरदायी शासन । किन्तु व्यवहार में यह सम्भव नहीं है। सबके प्रति उत्तरदायी होने का अर्थ है – किसी के प्रति उत्तरदायी न होना । लोकतन्त्र में शासक अपने उत्तरदायित्वों को एक-दूसरे पर टाल देते हैं।

(7) मतदाताओं की उदासीनता – लोकतन्त्र के अन्तर्गत सामान्य मतदाता राजनीतिक विषयों के प्रति उदासीन होता है। मतदान के समय बार-बार प्रेरित करने पर भी केवल 50% मतदाता ही अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। ऐसी स्थिति में जनता की इच्छाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है।

(8) राजनीतिक शिक्षा का दम्भ – लोकतन्त्र में निर्वाचन के समय मतदाताओं के समाने समस्याओं को अत्यन्त विकृत रूप में में प्रस्तुत कर जनता को भ्रमित कर दिया जाता है। परिणामस्वरूप जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त नहीं हो पाती तथा नागरिक सार्वजनिक जीवन के लिए हानिकारक बातों को सीखते हैं।

(9) सर्वतोमुखी प्रकृति की असम्भावना – लोकतन्त्र में शासक वर्ग का समस्त ध्यान राजनीति पर ही केन्दित होता है जिससे साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में उदासीनता उत्पन्न हो जाती है। विद्वानों का अपने कार्यों में समुचित सम्मान व प्रोत्साहन न मिलने के कारण उनकी उस कार्य में रूचि समाप्त हो जाती है और मानव जीवन का सर्वतोमुखी विकास नहीं हो पाता है।

(10) उत्तेजना की प्रबलता – लोकतन्त्रात्मक शासन का एक बहुत बड़ा दोष यह है कि इसमें प्रायः तर्क और विवेक का प्रयोग नहीं करते हैं। लीबॉन कहते है कि “”लोकप्रियता सरकार उत्तेजना के हिंडोले में झूलती रहती है और प्रायः भीड़ की सरकार बन जाती है।”

(11) पेशेवर राजनीतिज्ञों का विकास – आलोचकों के अनुसार, लोकतन्त्र में परिश्रमी और कार्यकुशल व्यक्ति अपने जीविकोपार्जन में लगे रहने के कारण राजनीति में सक्रिय रूप से भाग नही ले पाते हैं जबकि किसी व्यापार, षिल्प या पेषे को ईमानदारी और योग्यता के साथ न कर सकने वाले लोग राजनीति को ही अपना धन्धा बना लेते हैं।

(12) युद्ध और संकट के समय निर्बल – युद्ध तथा संकट के समय अतिषीघ्र निर्णय लेने की आवष्यकता होती है। लेकिन लोकतन्त्रात्मक सरकारें अतिशीघ्र निणर्य लने में सक्षम नहीं होती। अतः ये युद्ध औश्र संकट के समय निर्बल सिद्ध होती हैं।

(13) सच्चा लोकतन्त्र सम्भव नहीं – इन सबसे अतिरिक्त लोकतन्त्र सैद्धान्तिक रूप में चाहे कितना श्रेष्ठ क्यों न हो, व्यवहार में सच्चा लोकतन्त्र संभव ही नहीं है। व्यवहार में लोकतन्त्र के नाम पर या तो ‘बहुमत का निरंकुष शासन स्थापित हो जाता है या गिने-चुन नेताओं के शासन में बदल जाता है।

लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ

लोकतन्त्रात्मक शासन यथा प्रजा तथा राजा के सिद्धान्त पर आधारित है। मानव-व्यवहार को सुधार कर ही इस शासन व्यवस्था में सुधार किया जा सकता है। जिस प्रकार कुछ पौधे विशिष्ट प्रकार की जलवायु में ही विकसित होते हैं, उसी प्रकार सामाजिक तथा राजनीतिक संस्थाओं के विकास के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं।

लोकतन्त्र भी एक विशिष्ट वातावरण में ही फलता-फूलता है। लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्तें निम्नलिखित हैं-

(1) शिक्षित एवं जागरूक जनता – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता शिक्षित हो, शिक्षित जनता को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। साधारण जनता में इतनी बुद्धि होनी चाहिए, वह देष की आवष्यकताओं को समझ सके, प्रतिनिधियों का निर्वाचन कर सके तथा अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का पालन कर सके ।

(2) राष्ट्रीय चरित्र – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता चरित्रवान तथा नैतिक हो । जहाँ के नागरिकों का नैतिक स्तर उच्च नहीं होता, वहाँ सम्पूर्ण समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता है। वहाँ लोकतन्त्र सफल नहीं हो सकता । अतः लोकतन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों का चरित्रवान होना आवष्यक है।

(3) आर्थिक समानता – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि राज्य में आर्थिक समानता हो । आर्थिक समानता का तात्पर्य है कि सभी व्यवितयों को न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो । धनी तथा निर्धन वर्ग के बीच खाई बहुत अधिक चौड़ी न हो। धन सम्बन्धी असमानता को अधिकतम सीमा तक दूर किया जाना चाहिए।

(4) नागरिक स्वतन्त्रतायें – लोकतन्त्र की सफलता के लिए परंमावश्यक है कि नागरिकों का विचार आर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, प्रेस की स्वतन्त्रता, साहित्य के प्रकाशन की स्वतन्त्रता, सम्मेलन करने तथा संगठन निर्माण की स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए। जनता को सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए। यह लोकतन्त्र की आवष्यक शर्त है।

(5) लिखित संविधान और प्रजातान्त्रिक परम्पराएँ – लोकतन्त्र की सफलता के लिए लिखित संविधान का होना आवश्यक है क्योंकि लिखित संविधान द्वारा जनता सरकार के रूप, अधिकार तथा कर्तव्यों का ज्ञान सरलतापूर्वक प्राप्त कर लेती है। लिखित संविधान जनता अधिकारों का रक्षक होता है। लोकतन्त्र की सफलता के लिए लोकतान्त्रिक परम्पराओं का पालन करना भी आवष्यक है।

(6) समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था – लोकतन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक व्यवस्था न्याय और समानता पर आधारित होनी चाहिए। समाज में जन्म, जाति, लिंग, रंग, धर्म, सम्प्रदाय आदि के भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का समान महत्व दिया जाना चाहिए।

(7) स्थानीय स्वशासन – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि स्थानीय स्वषासन की संस्थाओं का विकास किया जाय। स्थानीय क्षेत्रों में लोकतन्त्र की स्थापना की जाय। स्थानीय संस्थाएँ लोकतन्त्र का सच्चा प्रतिबिम्ब होती है।

(8) समाज में एकता की भावना – लोकतन्त्रीय शासन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता में आधारभूत एकता की भावना विद्यमान होनी चाहिए जिससे वे पारस्परिक सहयोग के आधार पर सामुदायिक जीवन व्यतीत कर सकें।

(9) स्वस्थ व सुदृढ़ राजनीतिक दल – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल आर्थिक तथा राजनीतिक कार्यक्रमों पर ही आधारित होने चाहिए । इनका संगठन धर्म, जाति, भाषा या प्रान्तीय भेदों के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए ।

(10) बुद्धिमान और सतर्क नेतृत्व – लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नेताओं में उचित निर्णय शक्ति, साहस, अच्छी योग्यता, विशिष्ट आरम्भ शक्ति व चारित्रिक गुण विद्यमान हों। जनता को इन नेताओं में पूर्ण विश्वास होना चाहिए।

(11) न्यायप्रिय बहुमत तथा सहनशील अल्पमत – यद्यपि लोकतन्त्र बहुमत शासन ही होता है लेकिन बहुमत को मनमाना तथा निरंकुश का व्यवहार नहीं करना चाहिए। लोकतन्त्र का अर्थ बहुमत का अत्याचार नहीं है। साथ की अल्पमत में भी सहनशीलता होनी चाहिए ।

(12) योग्य और निष्पक्ष नागरिक सेवाएँ- लोकतन्त्र की सफलता के लिए योग्य और निष्पक्ष नागरिक सेवाएँ अत्यन्त आवश्यक है। नागरिक सेवाएँ ही नीतियों को क्रियान्वित करने का कार्य करती है।

(13) स्वतन्त्र प्रेस – लोकतन्त्र की सफलता के लिए स्वतन्त्र लोकमत के निर्माण तथा अभिव्यक्ति में प्रेस अर्थात् समाचार-पत्र बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं। इसके लिए समाचार-पत्र; योग्य, निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र हाथों में निहित होने चाहिए।

(14) विश्व शान्ति की स्थापना – लोकतन्त्र की सफलता के लिए विश्वशान्ति की स्थापना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि युद्ध के समय लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को छाड़कर स्वेच्छाचारिता की प्रवृत्ति अपना ली जाती है।

इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए उपर्युक्त शर्ते आवश्यक है। यदि उपर्युक्त परिस्थितियाँ किसी देश में विद्यमान हैं तो लोकतन्त्र की सफलता में कोई सन्देह नहीं है।

सारांश

लोकतन्त्र में जनता प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लेती है। लोकतन्त्र की विविध प्रकार से जो आलोचनाएँ की गई हैं वे लोकतन्त्र की नहीं वरन् उन व्यक्तियों की हैं जो लोकतन्त्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करत है। व्यक्तियों को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करके, उनकी नैतिक उन्नति के प्रयास करके इन दोषों को सरलता से दूर कियाजा सकता है। लोकतन्त्र ने मानवीय दोषों को कम करने का ही प्रयास किया है।

लोकतन्त्र वर्तमान समय की परिस्थितियों और विचारों के अनुकूल है। वास्तव में लोकतन्त्र से बढ़कर ‘आत्म सुधारवादी सरकार या राजनीतिक व्यवस्था कोई नहीं है। अतः कहा जा सकता है कि लोकतन्त्र वर्तमान समय की सर्वोत्तम शासन व्यवस्था है।

अभ्यास प्रश्न

1. लोकतंत्र से आप क्या समझते है? उल्लेख किजिये ।

2. लोकतंत्र की विशेषताओं का वर्णन किजिये ।

3. लोकतंत्र के आधारभूत तत्व का उल्लेख किजिये ।

4. लोकतंत्रके प्रकार को स्पष्ट करें।

5. लोकतंत्र के गुणों का वर्णन किजिये ।

6. लोकतंत्र के दोषों का उल्लेख किजिये ।

7. लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक परिस्थितियों का वर्णन किजिये।

FAQ

लोकतंत्र की स्थापना कब हुई?

भारत में लोकतंत्र की स्थापना 26 जनवरी 1950 को संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया।

लोकतंत्र के जनक कौन है?

क्लिस्थनीज एक प्राचीन एथेनियन कानून निर्माता थे जिन्हें प्राचीन एथेंस के संविधान में सुधार करने और इसे लोकतांत्रिक स्तर पर स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है।

लोकतंत्र की खोज किसने की?

क्लिस्थनीज़ के तहत, जिसे आम तौर पर 508-507 ईसा पूर्व में एक प्रकार के लोकतंत्र का पहला उदाहरण माना जाता है, एथेंस में स्थापित किया गया था। क्लिस्थनीज को “एथेनियन लोकतंत्र का जनक” कहा जाता है।

लोकतंत्र शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई?

पहली बार ‘लोकतंत्र’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई थी।

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कौन है?

भारत दुनिया का सबसे बड़ा संसदीय लोकतंत्र है।

भारत में लोकतंत्र के कितने अंग है?

भारतीय लोकतंत्र की शासन व्यवस्था में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका।

लोकतंत्र दिवस कब मनाया जाता है?

लोकतंत्र दिवस 15 सितंबर को मनाया जाता है।

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