अरविंद घोष का जीवन परिचय | Maharshi Arvind Ghosh Ka Jivan Parichay

अरविन्द घोष या श्री अरविन्द (Maharshi Arvind Ghosh Ka Jivan Parichay) एक योगी एवं दार्शनिक थे। वे 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में जन्मे थे। इनके पिता एक डाक्टर थे। इन्होंने युवा अवस्था में भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में भाग लिया, किन्तु बाद में श्री अरविंद एक योगी बन गये और इन्होंने पांडिचेरी में एक आश्रम स्थापित किया।

Table of Contents

महर्षि अरविंद घोष

1. प्रस्तावना

2. जीवन परिचय

3. जीवन दर्शन

4. शिक्षा दर्शन

    1.  शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत

    2.  शिक्षा का संप्रत्यय

    3.  शिक्षा के उद्देश्य

    4.  शिक्षा का पाठ्यक्रम

    5.  शिक्षण की पद्धति

    6.  शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन

    अरविंद घोष का जीवन परिचय | Maharshi Arvind Ghosh Ka Jivan Parichay

    श्री अरविंद घोष का जन्म 15 अगस्त सन 1872 ईस्वी में कोलकाता के अत्यंत संपन्न घोष परिवार में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर कृष्णन घोष एक सफल चिकित्सक थे। अरविंद की प्रारंभिक शिक्षा लॉरेटो कॉन्वेंट स्कूल दार्जिलिंग में हुई। उनके पिता यह चाहते थे कि उन्हें पाश्चात्य शिक्षा, संस्कृति एवं साहित्य के बारे में गहरी जानकारी हो।

    अतः अरविंद भी अपने भाइयों के साथ इंग्लैंड शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं। उनके पिता उन्हें आईसीएस की परीक्षा दिला कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के साथ जोड़ना चाहते थे। लेकिन इंग्लैंड में रहकर ही अरविंद के मन में राष्ट्रवाद की भावना का विकास हो चुका था।

    जब 1902 को वह भारत आए तब  वह गुप्त आतंकवादी संस्थाओं के संपर्क में आए। इससे पूर्व वह राष्ट्रवाद से प्रेरित  लेख गुप्त नाम से  लिखते रहे। उस समय भारत की राजनीतिक स्थितियों में भी व्यापक बदलाव आ गया था। 1905 की बंगाल विभाजन ने घोष को प्रभावित किया और वे राजनीति में सक्रिय हो गए। इस दौरान उनका मूल लक्ष्य कांग्रेस को उदारवादी नेतृत्व से मुक्त  करना था।

    1908 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, यद्यपि वह आरोपों से मुक्त हो गए। लेकिन बंदी जीवन में उन में एक महान परिवर्तन हुआ। वह आध्यात्म बाद की और पहले ही झुके हुए थे पर कारागार में उनका आध्यात्मिक दृष्टिकोण और अधिक प्रखर होकर उभरा।

    1910 में भी सक्रिय राजनीति से अलग होकर पांडिचेरी चले गए और वहां जाकर आध्यात्मिकता के संबंध में गहन चिंतन और मनन किया। पांडिचेरी में वह 40 वर्ष तक योग साधना और साहित्य क्रियाकलापों में संलग्न रहे। पांडिचेरी में ही 5 दिसंबर 1950 को इस महापुरुष का देहांत हो गया।

    श्री अरविंद द्वारा रचित ग्रंथ

    श्री अरविंद एक बहुमुखी लेखक और विचारक थे। उन्होंने अपने विचारों को प्रकाशित करने के लिए अनेक रचनाएं की।

    उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं-

    1.  द लाइफ डिवाइन
    2.  ऐसे ऑन गीता
    3.  द फ्यूचर पोएट्री
    4.  पावर  विदिन
    5.  द ह्यूमन साइकिल
    6.  वार एंड सेल्फ डिटरमिनेशन
    7.  सावित्री
    8.  आइडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी

    शिक्षा दर्शन

    शिक्षा दर्शन  के आधारभूत तत्व

    अरविंद के शिक्षा दर्शन की आधारभूत सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

    1.  शिक्षा का केंद्र बालक होना चाहिए।
    2.  शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए।
    3.  शिक्षा का आधार ब्रह्मचर्य होना चाहिए।
    4.  शिक्षा बालक की सभी पक्षों का विकास करें और उसे पूर्ण मानव बनाए।
    5.  शिक्षा बालक की मनोवृत्ति एवं मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों के अनुसार होना चाहिए।
    6.  शिक्षा बालकों में नैतिकता का विकास करें तथा उसके व्यवहारिक जीवन को सफल बनाएं।
    7.  भ्रष्टाचार को रोकने हेतु शिक्षा में धर्म को स्थान देना चाहिए।
    8.  शिक्षा का  विषय रोचक होना चाहिए।
    9.  शिक्षा को बालकों में चेतना का विकास करना चाहिए।
    10.  शिक्षा को व्यक्ति के अंतः करण का विकास करना चाहिए।

    शिक्षा का उद्देश्य

    अरविंद के अनुसार शिक्षा का कार्य बालक के शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, नैतिक और आध्यात्मिक आदि सभी प्रकार का विकास करना है। इस दृष्टिकोण से उन्होंने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताएं हैं- 

    1. शारीरिक विकास एवं शुद्धि
    2. ज्ञानेंद्रियों का प्रशिक्षण
    3. मानसिक शक्ति का विकास
    4. नैतिकता का विकास
    5. अंतः करण का विकास
    6. आध्यात्मिक विकास

    अरविंद घोष के आर्थिक विचार

    1. औद्योगिक स्वरूप का निर्धारण

    2. समाजवाद

    3. ग्रामोद्योग तथा कुटीर उद्योगों का महत्व

    4. वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास को बढ़ावा

    5. मिश्रित अर्थव्यवस्था

    6. अरविंद घोष बेकारी

    अरविंद घोष  के राजनीतिक विचार

    1. आध्यात्मिक राष्ट्रवाद

    2. मानववाद संबंधी विचार

    3. स्वतंत्रता संबंधी विचार

    4. लोकतंत्र संबंधी विचार

    5. साम्यवाद संबंधी विचार

    श्री अरविंद का राष्ट्रवाद

    श्री अरविंद को भारत की महानता पर गर्व था। वह मानते थे कि अतीत में भारत एक महान देश रहा है तथा भविष्य में उसका विश्व में एक गौरवशाली स्थान निश्चित है। उसे फिर से गौरवशाली स्थान पर प्रतिष्ठित करना हर भारतीय का उद्देश्य होना चाहिए। इस संबंध में श्री अरविंद ने राष्ट्रवाद संबंधी अपने विचार प्रकट किए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

    1. राष्ट्रवाद की नई व्याख्या

    2. राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रीय वाद

    3. राष्ट्रवाद और मानवता बाद

    4. राष्ट्रवाद और इसकी प्राप्ति के साधन

    श्री अरविंद के दार्शनिक विचार

    श्री अरविंद ने जीवात्मा और मानस का अति सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उन्होंने मानसिक स्तर की अनेक श्रेणियां मानी है, जैसे उच्चतर मानस, ज्योतिर्मय मानस, अवरोध अनुभूति का मानस और अति मानस। इस संबंध में इनका वर्णन इस प्रकार है-

    1. जीव आत्मा

    2. अति मानस

    3. आदिमानव

    सारांश

    निसंदेह, अरविंद भारत के महान राजनीतिक विचारकों में से एक थे। वह एक महान योगी, संत, मानवता के प्रेमी और दार्शनिक बौद्धिक थे। वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने पूर्ण स्वराज्य की मांग की। उन्होंने आध्यात्मिक राष्ट्रवाद में एक जान फूंकी और मातृभूमि के देवी स्वरूप को प्रस्तुत किया।

    विदेशी शासन की पूर्ण मुक्ति के आदर्श का प्रतिपादन करके श्री अरविंद ने राष्ट्रीय आंदोलन को गति प्रदान की। इसके अलावा मानवीय एकता पर बल देकर विश्व में शांति, बंधुत्व एवं आपसी सहयोग पर बल दिया जो आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना में निर्णायक साबित हुआ।

    FAQ

    श्री अरबिंदो क्यों प्रसिद्ध है?

    महर्षि अरबिंद घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक और भारतीय राष्ट्रवादी कवि थे जिन्होंने आध्यात्मिक रूप से पृथ्वी पर दिव्य जीवन के दर्शन को प्रतिपादित किया। 5 दिसंबर, 1950 को पांडिचेरी में पंचतत्व में विलीन हो गए।

    महर्षि अरविन्द की मृत्यु कैसे हुई?

    उन्हें एक वर्ष तक अलीपुर जेल में कैद रखा गया। | अलीपुर जेल में ही उन्हें हिन्दू धर्म एवं हिन्दू-राष्ट्र विषयक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति हुई। इस षड़यन्त्र में अरविन्द को शामिल करने के लिये सरकार की ओर से जो गवाह तैयार किया था उसकी एक दिन जेल में ही हत्या कर दी गयी।

    अरबिंदो घोष ने क्या लिखा?

    कुछ सालों बाद वह कलकत्ता छोड़ पॉन्डिचेरी बस गए जहा उन्होंने एक आश्रम का निर्माण किया। श्री अरबिंदो का जीवन वेद ,उपनिषद और ग्रंथों को पढ़ने और उनके अभ्यास करने ने गुजरा जिसके कारण उन्होंने कई प्रमुख रचनाएँ की। द ह्यूमन साइकिल, द आइडियल ऑफ़ ह्यूमन यूनिटी, द फ्यूचर पोएट्री उनमे से एक हैं।

    समग्र योग के संस्थापक कौन हैं?

    महर्षि अरविन्द

    अरविंद के अनुसार राष्ट्रवाद क्या है?

    श्री अरविंद के अनुसार राष्ट्रवाद क्या है ? राष्ट्रवाद केवल राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है, यह तो एक धर्म है, जो पूरी तरह से धार्मिक भावना से ओतप्रोत है । यह तो ईश्वर की वाणी है, जिसे लेकर मानव को जीवित रहना है। यही मानव आत्मा की अभिव्यक्ति भी है ।

    महर्षि अरविंद का प्रथम संदेश क्या मिला था?

    उन्होंने सर्वप्रथम घोषणा की कि मानव सांसारिक जीवन में भी दैवी शक्ति प्राप्त कर सकता है।

    अरविंद के माता पिता का क्या नाम था?

    महर्षि अरविंद के पिता का नाम कृष्णन घोष और माता का नाम स्वमलता था।

    श्री अरबिंदो का दर्शन क्या था?

    अरबिंदो का जीवन दर्शन आदर्शवाद, यथार्थवाद, प्रकृतिवाद और व्यावहारिकता का संश्लेषण है। उनके अनुसार, ज्ञान (ज्ञान), भक्ति (भक्ति) और कर्म (कार्य नैतिकता) मनुष्य को दिव्य मार्ग पर ले जा सकते हैं। लेकिन एक स्वस्थ व्यक्तित्व के लिए आध्यात्मिकता, रचनात्मकता और बौद्धिकता का संश्लेषण आवश्यक है।

    अरबिंदो के अनुसार सुपरमाइंड क्या है?

    श्री अरविन्द के अनुसार अतिमानस सत्य-चेतना है। इसे इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह पूर्ण आत्मा की चेतना है और स्वयं सत्य का अवतार है। अतिमानस ज्ञान का उच्चतम रूप है, और इसलिए आत्मा या ब्रह्म के निकट है।

    श्री अरबिंदो के अनुसार चेतना क्या है?

    श्री अरबिंदो, द लाइफ डिवाइन, चेतना केवल स्वयं और वस्तुओं के प्रति जागरूकता की शक्ति नहीं है, यह एक गतिशील और रचनात्मक ऊर्जा भी है।

    क्या श्री अरबिंदो एक स्वतंत्रता सेनानी है?

    वह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारतीय आंदोलन में शामिल हुए , 1910 तक इसके प्रभावशाली नेताओं में से एक थे, और फिर एक आध्यात्मिक सुधारक बन गए, जिन्होंने मानव प्रगति और आध्यात्मिक विकास पर अपने दृष्टिकोण का परिचय दिया।

    अरविंद घोष ने किसकी स्थापना की थी?

    1910 में पुड्डचेरी चले गए और यहां उन्होंने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की। यहां उन्होंने अरविंद आश्रम ऑरोविले की स्थापना की थी और काशवाहिनी नामक रचना की।

    अरविंद घोष द्वारा प्रारंभ अंग्रेजी साप्ताहिक का क्या नाम था?

    बंदे मातरम एक साप्ताहिक समाचार पत्र था जिसकी स्थापना 1905 में बिपिन चंद्र पाल ने की थी और इसका संपादन श्री अरविन्द घोष ने किया था।

    महर्षि श्री अरविंदो ने अपने भाषण में कौन सा संदेश दिया है?

    उनका संदेश ये है कि वास्तविक अनुशासन अपने अंदर होता है। वे कहते है कि बच्चे स्वयं अपने ज्ञान को विकसित कर सकते है। शिक्षक उसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनके अनुसार यह क्षमता उसी शिक्षक में हो सकती है जिसे पाठ्य चर्चा व शिक्षार्थी दोनों का संपूर्ण ज्ञान हो।

    महर्षि अरविंद घोष की प्रमुख रचना कौन सी है?

    उनकी प्रमुख कृतियां लेटर्स ऑन योगा, काव्य कृति सावित्री, योग समन्वय, दिव्य जीवन, फ्यूचर पोयट्री और द मदर हैं। भारतीय संस्कृति के बारे में महर्षि अरविंद ने फाउंडेशन ऑफ़ इंडियन कल्चर तथा ए डिफेंस ऑफ़ इंडियन कल्चर नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।

    अरविंद घोष की मृत्यु कब हुई?

    अपना शेष जीवन श्री अरविन्द ने इसी आश्रम में रहते हुए आध्यात्मिक एवं योग साधना में व्यतीत किया। 5 दिसम्बर 1950 ई. को महर्षि श्री अरविन्दो ने अपना शरीर त्याग दिया।

    अरबिंदो पांडिचेरी क्यों आए थे?

    आश्रम वास्तव में 1926 में भारत के महानतम दार्शनिक-कवियों में से एक अरबिंदो घोष द्वारा स्थापित किया गया था, जो मूल रूप से अंग्रेजों के उत्पीड़न से बचने के लिए पांडिचेरी आए थे। यहां पहुंचने के बाद वह आध्यात्मिक क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए और योग की शक्ति की खोज की।

    अरविंद के अनुसार राष्ट्रवाद क्या है?

    श्री अरविंद के अनुसार राष्ट्रवाद क्या है ? राष्ट्रवाद केवल राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है, यह तो एक धर्म है, जो पूरी तरह से धार्मिक भावना से ओतप्रोत है । यह तो ईश्वर की वाणी है, जिसे लेकर मानव को जीवित रहना है। यही मानव आत्मा की अभिव्यक्ति भी है ।

    समग्र योग क्या है?

    समग्र जीवन दृष्टि की राह के लिए श्री अरविन्द ने योग को माध्यम माना। योग से मानसिक शांति एवं संतोष प्राप्त होता है। योग का अर्थ जीवन को त्यागना नहीं है। श्री अरविन्द के अनुसार योग का अर्थ दिव्य शक्ति पर विश्वास रखते हुए जीवन संघर्षों से समायोजन कर आगे बढ़ते जाना है।

    अरबिंदो के योग को पूर्ण योग क्यों कहा जाता है?

    श्री अरबिंदो अपने योग को पूर्ण योग या इंटीग्रल योग कहते हैं। इस योग के लिए सत्ता के किसी एक भाग का उपयोग करने की विधि पर्याप्त नहीं है । आत्मा जो अस्तित्व के सभी भागों को समाहित करती है, उसे स्वयं साधना का उपकरण बनना चाहिए। पूर्ण योग में, आत्मा मुक्ति की तलाश नहीं करती है।

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