प्रारंभ में अनुच्छेद 51 (A) के तहत 10 मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties Hindi me) को जोड़ा गया था। बाद में 2002 में, 86वें संविधान संशोधन अधिनियम ने सूची में एक और कर्तव्य जोड़ा गया। इस प्रकार भारतीय संविधान में कुल 11 मौलिक कर्त्तव्य (11 Fundamental Duties in Hindi) हैं।
मूल कर्त्तव्य (Fundamental Duties)
संविधन का पालन तथा उसके आदर्शो संस्थाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मानः भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रेरक आदर्शों का पालनः प्रत्येक भारतीय नागरिक का कतर्व्य है कि वह स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखे और उनका पालन करें।
भारत की सम्प्रभुता एकता और अखण्डता की रक्षाः प्रत्येक भारतीय नागरिक का कतर्व्य है कि वह भारत की सम्प्रभुता एकता और अखण्डता की रक्षा करें और अक्षुण्ण बनाये रखे। इसे भारतीय नागरिकों के सर्वोच्च कर्तव्य की संज्ञा दी जा सकती है।
देश की रक्षा और राष्ट्र सेवाः प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह देश की रक्षा करे और बुलाये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
भारत के लोगों में समरसता और भ्रातृत्व की भावना का विकासः भारत के सभी भागों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का विकास करे जो धर्म भाषा प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो और ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
इस प्रकार दो कर्तव्यों का बोध कराया गया हैः
समस्त भारतीयों के मध्य समरसता और भ्रातृत्व की भावना का विकास।
स्त्रियों का सम्मान करना।
समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा की रक्षाः हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और संरक्षण करे।
प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षाऔर सभी प्राणियों के प्रति दया भावः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन झील नदी और वन्य जीव भी हैं रक्षा करे और उनका संवर्धन करे तथा प्राणी-मात्रा के प्रति दयाभाव रखे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन का विकासः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा व हिंसा से दूर रहनाः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे व हिंसा से दूर रहे।
व्यक्तिगत तथा सामूहिक उत्कर्ष का प्रयासः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि व्यक्तिगत व सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रगति और उपलब्धि की नवीन ऊंचाइयों को छू सके।
86वें संवैधानिक संशोधन 2002 द्वारा अनुच्छेद 51क में संशोधन करके के बाद जोड़े गए नए खण्ड के अनुसार प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने के उद्देश्य से अभिभावकों के लिए भी यह कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि वे छः से चौदह वर्ष के अपने बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करें।
कर्तव्यों का क्रियान्वयन
42वें संशोधन द्वारा संविधान में जिन कर्तव्यों को सम्मिलित किया गया है वे सांविधिक कर्तव्य हैं और वे विधि द्वारा प्रवर्तनीय होंगे।
उन कर्तव्यों के अनुपालन में विफल होने पर दण्ड का आरोपण करने के लिए संसद् विधि द्वारा दण्ड विधान करेगी।
हालाँकि इस प्रावधान की सफलता बहुत हद तक उस तरीके पर निर्भर करेगी जिस पर तथा जिन व्यक्तियों के ऊपर इन कर्तव्यां को लागू किया गया हैं।
मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties In Hindi) की विशेषताएँ
मौलिक कर्तव्यों के तहत नैतिक और नागरिक दोनों ही प्रकार के कर्तव्य शामिल किये गए हैं। उदाहरण के लिये ‘स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का पालन करना’ एक नैतिक कर्तव्य है
जबकि ‘संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना’ एक नागरिक कर्तव्य है।
गौरतलब है कि कुछ मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशी नागरिकों को प्राप्त हैं परंतु मौलिक कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों पर ही लागू होते हैं।
संविधान के अनुसार मौलिक कर्तव्य गैर-न्यायोचित या गैर-प्रवर्तनीय होते हैं अर्थात् उनके उल्लंघन के मामले में सरकार द्वारा कोई कानूनी प्रतिबंध लागू नहीं किया जा सकता है।
संविधान के तहत उल्लेखित मौलिक कर्तव्य भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं धर्म एवं पद्धतियों से भी संबंधित है।
मूल कर्त्तव्यों (Fundamental Duties In Hindi)का महत्व
समाज व्यक्ति से व्यापक है अतः मौलिक कर्त्तव्यों द्वारा लोगों को सामाजिक दायित्वों का बोध कराया जाता है।
जो मूल कर्त्तव्य विधि द्वारा अनिवार्य कर दिए गए है उनके उल्लंघन पर दंड दिया जा सकता है।
मूल कर्त्तव्य कानूनों की वैधता की परीक्षण में सहायता करते हैं।
लोगों द्वारा अधिकारों की माँग करने के अलावा मूल कर्त्तव्यों का भी पालन किया जाने लगा है।
मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties In Hindi)की आलोचना
दिये गये मूल कर्त्तव्यों में अर्थ स्पष्टता का अभाव है।
मौलिक कर्त्तव्य लोकतांत्रिक भावना के विरुद्ध है क्योंकि यह राज्य को ज्यादा महत्व देते है व्यक्ति को कम।
जिस देश में दो/तिहाई जनसंख्या अशिक्षित हो तो ऐसे समाज में मूल कर्त्तव्यों का महत्व नहीं होगा।
मौलिक कर्तव्यों की प्रासंगिकता
मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल किये जाने के तीन दशक बाद भी नागरिकों में इसके संबंध में पर्याप्त जागरूकता की कमी देखी जाती है।
वर्ष 2016 में दायर की गई एक जनहित याचिका में यह तथ्य सामने आया कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों, जजों और सांसदों सहित देश के लगभग 99-9 प्रतिशत नागरिक संविधान के अनुच्छेद 51 A में वर्णित कर्तव्यों को पूरा नहीं करते हैं।
उसका सबसे मुख्य कारण यह है कि उन्हें इस संबंध में जानकारी ही नहीं है। वर्तमान में भारत की प्रगति के लिये मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन की आवश्यकता पर ज़ोर देना अनिवार्य हो गया है।
गौरतलब है कि हालिया कई घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि हम देश में भाईचारे की भावना को कायम रखने में असमर्थ रहे हैं।
ध्यातव्य है कि जब तक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के प्रयोग के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करेंगे तब तक हम भारतीय समाज में लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत नहीं कर पाएँगे।
झण्डा-विवाद तथा नवीन ध्वज संहिता
पुरानी ध्वज संहिता जिसमें प्राचीनकालीन प्रावधानों की एक लंबी सूची थी में झण्डा फहराने का अधिकार कुछ ही व्यक्तियों का ही विशेषाधिकार था।
आठ वर्ष पूर्व जिन्दल समूह के उपाध्यक्ष नवीन जिन्दल ने झण्डा फहराने के अपने अधिकार पर प्रतिबंध को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की।
दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश कि तिरंगा फहराना मौलिक अधिकार है’तथा इसके बाद ध्वजसंहिता के उदारीकरण के प्रश्न के परीक्षण हेतु समिति गठित करने के सर्वोच्च न्यायालय की अनुशंसा के पश्चात् सरकार ने समिति गठित की। समिति की अनुशंसा के आधार पर केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने तिरंगा फहराने से संबंधित अनावश्यक कठोर नियमों में छूट देने का निर्णय लिया है।
नयी ध्वज संहिता
राष्ट्रीय ध्वज केवल सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जा सकता है।
राष्ट्रीय ध्वज की लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 3- 2 होना चाहिए।
राष्ट्रीय ध्वज किसी पोषाक तकिया यहां तक कि अंगौछे(नेपकीन)पर मुद्रित न हो।
राष्ट्रीय ध्वज को कफन के रूप में प्रयोग में न लाया जाए।
ध्वज को उपर से नीचे न फहराया जाए। यह भूमि पर स्पर्श नहीं होना चाहिए।
ध्वज अन्य ध्वजों से कुछ उचाई पर लहराना चाहिए सिवाय संयुक्त राष्ट्र या अन्य राष्ट्र के ध्वज के।
राष्ट्रीय ध्वज फटी हालत में नहीं होना चाहिए।
राष्ट्रीय ध्वज से संबंधित संशोधित संहिता 26 जनवरी 2003 से प्रभावी हुई।
राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान
श्याम नारायण चौकसे मामले में(राष्ट्र गान आदेश)उच्चतम न्यायालय ने सभी सिनेमा हॉल को फिल्मों के प्रारम्भ में राष्ट्र गान बजाने का निर्देश दिया।
विधान और नियम
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51aaaa के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए अपने आदर्शों और संस्थाओं राष्ट्र गान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना एक मौलिक कत्तर्व्य है।
प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971 संविधान राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान के अपमान के मामले से संबंधित है और इन प्रतीकों के अपमान पर दंडात्मक प्रावधान करता है।
भारतीय ध्वज संहिता 2002 एक कानून नहीं है बल्कि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी कार्यकारी निर्देशों का एक समेकन है और इसके तहत राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर रोक लगाने वाले व्यवहारों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान
दिसंबर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी सिनेमाघरो को फिल्म के प्रारंभ होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का निर्देश दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय के एक नोटिस के जवाब में केंद्र सरकार ने दृढ़तापूर्वक कहा है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना राष्ट्रीय गौरव का विषय है और उस पर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं हो सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने यह नोटिस श्याम नारायण चौकसे की जनहित याचिका के संदर्भ में जारी की है। याचिका में संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51a के अंतर्गत राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज के प्रति सम्मान को परिभाषित किए जाने या इस सम्बन्ध में दिशा-निर्देश बनाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार को परमादेश की रिट जारी करने की माँग की गई है। इससे पूर्व इसी प्रकरण में दिसम्बर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी सिनेमाघरों को फिल्म के प्रारम्भ होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का निर्देश दिया था।
FAQ
मौलिक कर्तव्य क्या है हिंदी में
उत्तर- मौलिक कर्त्तव्य-साधारण शब्दों में, किसी कार्य को करने के दायित्व को कर्त्तव्य कहते हैं। मौलिक कर्त्तव्य ऐसे बुनियादी कर्त्तव्यों को कहते हैं जो व्यक्ति को अपनी उन्नति व विकास के लिए तथा समाज व देश को प्रगति के लिए अवश्य ही करने चाहिए।
वर्तमान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या कितनी है
मूल रूप से संख्या में दस, मूल कर्तव्यों की संख्या 2002 में 86वें संशोधन द्वारा ग्यारह तक बढ़ाई गई थी, जिसमें प्रत्येक माता-पिता या अभिभावक को यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य सौंपा गया कि उनके छः से चौदह वर्ष तक के बच्चे या वार्ड को शिक्षा का अवसर प्रदान कर दिया गया है।
मौलिक कर्तव्य कहाँ से लिया गया है?
मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान से प्रेरित है। इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
11 मूल कर्तव्य कौन कौन से है?
11वां मौलिक कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन 2002 (86th Constitutional Amendment 2002) के बाद जोड़ा गया था। इस मौलिक कर्तव्य में यह बताया गया है की 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना, और माता-पिता या अभिभावक के रूप में यह सुनिश्चित करना कि उनके बच्चे को ऐसे अवसर प्रदान किए जा रहे हैं।
भारत में मौलिक कर्तव्यों की शुरुआत कब हुई थी?
उस वर्ष की शुरुआत में सरकार द्वारा गठित स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर, 1976 में 42वें संशोधन द्वारा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को संविधान में जोड़ा गया था।
मौलिक कर्तव्य क्या हैं?
संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना। उन महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया। भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।
कर्तव्य दिवस कब मनाया जाता है?
मप्र शिक्षक कांग्रेस द्वारा 3 जनवरी को मूल कर्तव्य दिवस का आयोजन शासकीय कन्या हायर सेकंडरी स्कूल बरखेड़ी जहांगीराबाद में किया गया है।
10 मौलिक कर्तव्य कब जोड़ा गया?
इसलिए, स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के आधार पर अनुच्छेद 51-ए के तहत संविधान के भाग IV-ए में दस मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था।
सबसे महत्वपूर्ण मौलिक कर्तव्य क्या हैं?
भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना। देश की रक्षा करना और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करना। भारत के लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करना जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो।
मौलिक कर्तव्य किस भाग में है
संविधान के भाग IV में सन्निहित अनुच्छेद 51 ‘क’ मौलिक कर्तव्यों के बारे में है।
भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य कहाँ से लिए गए हैं?
मौलिक कर्तव्यों का विचार रूस के संविधान से प्रेरित है। इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
भाग 4 क में क्या है?
भाग IV- ए: 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 ने संविधान में भाग IV- ए स्थापित किया जिसके अंतर्गत सभी मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया है। 86वां संशोधन: 11वें मौलिक कर्तव्य को बाद में 2002 के 86वें संशोधन अधिनियम द्वारा सूची में समाविष्ट किया गया।
संविधान में मौलिक कर्तव्य क्या है?
संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्र गान का आदर करना। स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का पालन करना। भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।
वर्तमान में कितने मौलिक कर्तव्य है?
मूल रूप से मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्तव्य जोड़ा गया था। सभी ग्यारह कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-ए (भाग- IV-ए) में सूचीबद्ध हैं।
वर्तमान में कितने मौलिक कर्तव्य हैं?
1976 में 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा भाग IV में 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया। उत्तर. भारतीय संविधान में कुल 11 मौलिक कर्तव्य।
11 मूल कर्तव्य कौन सा है?
11वां मौलिक कर्तव्य छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना है। 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा यह कर्तव्य जोड़ा गया था।
मौलिक कर्तव्यों का महत्व क्या है?
मौलिक कर्तव्य मौलिक अधिकारों से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। दोनों का महत्व नीचे सूचीबद्ध है: यह नागरिकों को निरंतर अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते समय, उन्हें अपने राष्ट्र और अन्य नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक होना चाहिए।
क्या मौलिक कर्तव्य अनिवार्य हैं?
ये कर्तव्य कानून द्वारा लागू करने योग्य नहीं हैं । हालाँकि, किसी मामले पर फैसला सुनाते समय अदालत उन्हें ध्यान में रख सकती है। नागरिकों को प्राप्त मौलिक अधिकारों के बदले में उनके दायित्व पर जोर देने के लिए उन्हें संविधान का हिस्सा बनाया गया था।