कायांतरित शैल किसे कहते हैं | Metamorphic Rocks in Hindi

आग्नेय एवं अवसादी चट्टानों में बदलते ताप और दाब के प्रभाव के कारण परिर्वतन या रूपान्तरण हो जाता है जिससे कायांतरित चट्टानों (Metamorphic Rocks In Hindi) का निमार्ण होता हैं।

Table of Contents

कायांतरित शैल (Metamorphic Rock)

वह चट्टान जो मौलिक आग्नेय चट्टानों एवम अवसादी चट्टानों पर विभिन्न प्रकार के कायांतरण प्रक्रमों के प्रभाव पड़ने से नई शैलों में परिवर्तित हो जाती है,उन्हें कायांतरित शैल कहते है।

कायांतरण के कारण मौलिक शैलों के गठन, संरचनाओं एवम खनिज संगठनों में भी बदलाव आ जाता है, कायांतरित शैलों का भी दोबारा कायांतरण हो सकता है।

खनिज स्रोत: उच्च तापमान पर भूपर्पटी और ऊपरी प्रावार में दबाव के कारण निर्मित शैल।

शैल निर्माण प्रक्रिया: तापमान और दबाव के प्रभाव में पुनः क्रिस्टलीकरण और पुनः संघटन द्वारा नए खनिजों का गठन।

संघटन एवं गठन: हमेशा क्रिस्टलीय, क्रिस्टल एकरेखीय, ज्यादातर शल्कन का विकास, वर्गीकरण के लिए संघटन और गठन का उपयोग।

वर्गीकरण: वर्गीकरण के लिए बनावट और खनिज संरचना का उपयोग।

उदाहरण: क्वार्ट्जाइट, स्लेट, फाइलाइट, शिस्ट, संगमरमर।

कायांतरित शैलों का वर्गीकरण (Classification Of Metamorphic Rocks)

कायान्तरित शैलों के वर्गीकरण में भारी कठिनाईयां हैं, जैसे एक ही मूल पदार्थ के विभिन्न विधियों से कायान्तरण होने पर एकदम भिन्न-भिन्न शैलें बन सकती है। कायान्तरित शैलों को उनके गठन, संरचना, कायान्तरण का स्तर एवं खनिज संगठन के आधार पर मुख्य रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-

1. शल्कित शैलें (Foliated Rocks): वो सभी कायान्तरित शैलें जो खनिजकीय एवं संरचनात्मक समान्तरता की संरचना दिखाती हो शल्कित शैलें कहलाती हैं, इसमें शामिल की गई शैलें स्लेट, फिलाइट, शिष्ट एवं नाइस है।

2. अशल्कित शेलें (Non-foliated Rocks): इस समूह में वे सभी कायान्तरित शैलें सम्मिलित की गई हैं, जिसमें शल्कन या खनिजों की समान्तर पट्टिकाएं अनुपस्थित होती हैं, जैसे- क्वार्टजाइट, संगमरमर एव हॉर्नफेल्स।

कायांतरित चट्टानों का गठन (Metamorphic Rocks In Hindi)

कायांतरित चट्टानों के गठनों एवं संरचनाओं को उनसे बाह्य सादृश्यता वाले आग्नेय गठनो से विभाजित करने के लिए ब्लास्टो शब्द का प्रयोग किया जाता है।

कायांतरण के फलस्वरूप पुनर्क्रिस्टलन से उत्पन्न गठनो में ब्लास्ट शब्द का उपयोग प्रत्यय के रूप में होता है, जबकि मूलावशेषी गठनो के लिए ब्लास्टो शब्द उपसर्ग की भांति उपयोग किया जाता है।

कायांतरित चट्टानों में निम्नलिखित गठन पाए जाते है

1. कायांतरण क्रिस्टली गठन – कायांतरित चट्टानों का पूर्णक्रिस्टली गठन कायांतरण क्रिस्टली गठन कहलाता है।

2. स्वक्रिस्टली गठन – जिन कायांतरित चट्टानों में खनिजों के क्रिस्टल उचित क्रिस्टलीय फलक बना लेते है, उन्हें स्वक्रिस्टली गठन कहते है।

3. पुनः पर्क्रिस्टली गठन – जो खनिज क्रिस्टल अपनी उचित क्रिस्टल आकृति नहीं बना पाते है, उन्हें पुनः परक्रिस्टली गठन कहते है।

4. मुलावशेषी गठन – जब मूल चट्टान के गठन कायांतरित चट्टान में रक्षित रह जाते है तो उसे मुलावशेषी गठन कहते है।

5. लक्ष्य पुनः क्रिस्टली गठन – जब स्वब्लॉस्टिंग क्रिस्टल हो तथा सूक्ष्म कणी आधात्रिका में अन्तः स्थापित हो तो इसे लक्ष्य पुनः क्रिस्टली गठन कहते है।

6. पुनः क्रिस्टल अंतर्वेशी गठन – जब आग्नेय चट्टानों के मूल क्रिस्टल अंतर्वेशी गठन के अवशेष कायांतरित चट्टानों में पाए जाते है तो उसे पुनः क्रिस्टल अंतर्वेशी गठन कहते है।

7. कण ब्लास्टी गठन – ऐसा पुनः क्रिस्टलित गठन जिसमे मुख्य घटकों के क्रिस्टल कणिकामय या समविमीय हो तो उन्हें कण ब्लास्टी गठन या ऐसी संरचना कहते है।

कायांतरित चट्टानों की संरचना

कायांतरित चट्टानों की संरचनाओं के सुविधाजनक समूहन निम्नानुसार किया जा सकता है –

1. अपदलनी संरचना – अपदलनी संरचना विच्छिन्न और खण्डमय चट्टानों में होती है, इनका विकास भूपर्पटी के ऊपरी मंडलो में अपरूपक प्रतिबलों द्वारा कठोर एवं भंगुर पदार्थों में संदलित होकर चूर्ण बनाने से होती है यह संरचना संदलन संकोणाश्म चट्टान में पाई जाती है।

2. धब्बे दार संरचना – मृण्मय चटटनो के कायांतरित होने पर उनमे धब्बेदार संरचनाये बनती है, इस संरचना में कुछ खनिजों के पोरफीलोब्लास्ट सुविकसित चट्टान चूर्ण की आधात्रिका में अन्तः स्थापित हो जाते है।

3. शिष्टाम संरचना – कायान्तरित शैलों में पत्रिकी एवं पटलित खनिजों के समान्तर पट्टियों में विनियस्त होने से बनी संरचना को शिष्टाम संरचना कहते हैं। असमविमीय सपाट खनिजों के पुनः क्रिस्टलन से पट्टियों में विन्यस्त होने को शल्कन (Foliation) कहते हैं। शिष्टाभ के शल्कन को शिष्टाभता कहा जाता है। शिष्टाम संरचना से युक्त शैल को शिष्ट (Schist) कहते हैं।

4. नाइसिक संरचना – कायान्तरित शैलों में हल्के एवं गहरे रंग के खनिजों के पृथक्करण से निर्मित एकान्तरण पट्टियों से बनी संरचना को नाइसी संरचना कहते हैं। ऐसी संरचना धारण करने वाली शैल को नाइस कहते हैं। नाइस शैलों में शिष्टाभता गौण रूप में होती है।

कायांतरण की प्रक्रिया

ताप, दाब एवं रासायनिक कारणों से मौलिक चट्टानों में उत्पन्न अनुक्रिया को कायांतरण कहते है यह सामान्यतः अधिक गहराई पर होता है। दूसरे शब्दों में यह कह सकते है, कि सामान्यतः कायांतरण का अर्थ चट्टान का पूर्णतः या अंशतः पुनः क्रिस्टलन और उसमे नयी संरचनाओं का निर्माण होता है।

ताप दाब और रासायनिक वातावरण में परिवर्तनों से एक खनिज समुच्चय के भौतिक एवं रासायनिक संतुलन में उलट पुलट हो जाता है और नवीन संतुलन स्थापित हो जाता है जिसमे नए खनिजों का निर्माण होता है इसी प्रक्रिया को कायांतरण कहते है।

कायांतरण से किसी चट्टान के घटक खनिज ऐसे दूसरे खनिजों में परिवर्तित हो जाते है जी नयी परिस्थितियों में अधिक स्थाई हो एवं नए खनिज भी अपने को इस प्रकार विन्यस्त कर लेते है, की नवीन वातावरण के अधिक अनुकूल संरचनाये उत्पन्न हो जाती है।

अलग अलग परिस्थितियों या कायांतरण प्रक्रमों से बनने वाली चट्टानों में खनिज संघठन, गठन एवं संरचनाये भी भिन्न भिन्न होती है।

ताप दाब एवं रासायनिक द्रव्य कायांतरण के प्रमुख कारक होते है जिनके काम ज्यादा होने की वजह से विभिन्न प्रकार की कायांतरित चट्टानें बनती है।

इसके अलावा पृथ्वी की सतह से गहराई का भी कायांतरण पर प्रभाव पड़ता है। कायांतरित कारकों की भिन्न भिन्न पैमानों से संयोजित होने से भी विभिन्न प्रकार के कायांतरित खनिजों का निर्माण होता है।

कायांतरण की प्रक्रिया के दौरान होने वाली सामान्य प्रक्रिया

पुनः क्रिस्टलन: इस प्रक्रिया में खनिज की पहचान को बदले बिना, कणों की आकृति और आकार में परिवर्तन होता है, जैसे चूनाश्म  पुनः क्रिस्टलन के पश्चात् संगमरमर में परिवर्तित हो सकता है।

प्रवस्था परिवर्तन: यह तब होता है जब एक खनिज अपने संघटन को बनाये रखता है लेकिन क्रिस्टल प्रणाली में परिवर्तन आ जाता है। जैसे कायनाइट (जिसकी रासायनिक संरचना है और क्रिस्टल प्रणाली त्रिनताक्ष/ है)

सिलीमेनाइट में बदल सकता है (जिसकी रासायनिक संरचना है और क्रिस्टल प्रणाली विषम लंबाक्ष है)।

कायांतरण अभिक्रिया या नियोक्रिस्टलीकरण : नियोक्रिस्टलीकरण (इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द से हुई है जो ‘नए’ के लिए प्रयुक्त होता है) के परिणामस्वरूप नए खनिज कणों की वृद्धि होती है, जो आद्य शैल से भिन्न होते हैं। यह काफी धीमी प्रक्रिया है और ठोस अवस्था में परमाणुओं के विसरण से सम्पन्न होती है।

दाब घुलन : यह प्रक्रिया तब होती है जब खनिजों की सतह संपर्क में होती है और खनिज कणों का विलय हो जाता हैं। इस प्रक्रिया के दौरान शैल पर कम तापमान में और सामान्यतः जल की उपस्थिति में दूसरों की तुलना में एक दिशा में ज्यादा दबाव पड़ता है।

प्लास्टिक विरूपण :  यह तब होता है जब एक शैल पर उच्च तापमान और दबाव कार्य करते है। इस प्रक्रिया में खनिजों का संघटन अपरिवर्तित रहता है। खनिज सुनम्य प्लास्टिक की तरह व्यवहार करते हैं और बिना खंडित हुये अपनी आकृति बदलते हैं।

कायांतरित शैलों में पाए जाने वाले सामान्य खनिज सिलिकेट समूह के हैं जैसे क्वार्ट्ज, फले डस्पार, माइका, कायांतरित शैलों में सबसे प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले खनिज हैं क्योंकि अधिकांश मूल शैल (प्रोटोलिथ) सिलिकेट खनिजों से समृद्ध हाते हैं

कुछ अन्य खनिजां में कायनाइट, ऐंडेल्यसूइट और गॉर्नेट के कछु प्रकार शामिल हैं। कैल्साइट खनिज से निर्मित चूनाश्म संगमरमर में रूपांतरित होता है। इसी प्रकार बालुकाश्म में मुख्यतः क्वार्ट्ज खनिज होता है जो कायांतरित होकर क्वार्ट्जाइट में परिवर्तित हो जाता है।

शैल चक्र

‘शैल के समान स्थिर’ एक प्रचलित कथन है जिसका अर्थ है कि एक शैल स्थायी और समय के साथ अपरिवर्तित रहती है। लेकिन यह कथन सच नहीं है। पृथ्वी 4.57 अरब वर्षों के अपने इतिहास में असंख्य बार शैलों के परिवर्तन और रूपांतरण की साक्षी है। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। कहानी के कथ्य को समझने के लिए हमें मात्र शैलों की भाषा को समझने की जरूरत है।

आइए शैल चक्र की अवधारणा के बारे में जानने से पहले पृथ्वी पर शैलों की कहानी संक्षेप में पढ़ें। सौर मंडल के जन्म के दौरान पिघले पदार्थ के एक गोल पिंड से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई थी। पिघला हुआ पदार्थ ठंडा हुआ और ठोस आग्नेय शैल के एक खोल के रूप में सतह पर जम गया। जब जब पृथ्वी की भूपपर्टी बन रही थी,

ज्वालामुखी गतिविधियों के कारण गैस और भाप उत्सर्जित हुईं जिनसे प्रारम्भिक वायुमंडल, महासागरों और इस प्रकार पहली जलवायु का उद्भव हुआ। ग्रह की सतह पर उत्पन्न जलवायु परिस्थितियें ने आग्नेय शैलों को अवसादों में परिवर्तित किया।

पर्वतों के टूटने से अपरदित अवसाद परिवहन के बाद निचले या गड्ढाकार संरचनाओं में संकलित हो गए। अवसादों के ढ़ेर सैकड़ों या हजारों फीट तक घने और गहरे हो गए।

अवसादों के अत्यधिक वजन ने अवसादों के सू़क्ष्म कणों को खनिज कणों पर सीमेंट के रूप में कोट/परत बनाना शुरू कर दिया। संघनन और सीमेंट के संघटन ने अवसाद को एक प्रक्रिया के माध्य से ठोस अवसादी शैल के रूप में परिवर्तित कर दिया, जिसे शिलीभवन कहा जाता है।

तल पर बनी अवसादी शैल, बढ़ते दबाव और तापमान के कारण पृथ्वी में और गहराई में घस़ती गईं। शैल में उपस्थित खनिज पुर्नःनवीनीकरण, पुनव्यवस्थित और विकृत संरचनाओ का निर्माण करते हुय नए खनिजों का निर्माण करते हैं और कायांतरित शैलो को जन्म देते हैं।

भले ही एक नई शैल बन गई हो, लेकिन ताप और दबाव संबंधित प्रक्रियाए बदं नहीं हातेी। अंततः, खनिज अपने पिघलने के बिंदु पर पहुंच जाते हैं और तरल मैग्मा में बदल जाती हैं। शैल पिघली हुई अवस्था में वापसी चक्र पूरा करती है और आग्नेय शैल और फिर अवसादी शैलों और फिर फर से कायांतरित शैल में परिर्वतित हो

मैग्मा पृथ्वी के अंदर पिघला हुआ द्रव या पदार्थ है। यह सभी आग्नेय शैलों का स्रोत है। चूंकि पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के दौरान बड़े पैमाने पर पिघली हुई थी, इसलिए मैग्मा को शैल चक्र का प्रारंभ माना जा सकता है।

आग्नेय, कायांतरित और अवसादी शैलों के मध्य का संबंध एक शैल चक्र का निर्माण करता है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि शैल चक्र का क्रम युगों से चला आ रहा है; यह पृथ्वी की अन्य चक्रीय प्रक्रियाओं के साथ अंतरंग रूप से शामिल है।

यह 1785 में हटन द्वारा दिए गए एकरूपतावाद के सिद्धातं यानि वर्तमान अतीत की कुंजी है) भूविज्ञान की बुनियादी अवधारणाओं में से एक है।

शैल चक्र विशेष रूप से प्लेट विवर्तनिकी प्रक्रियाओं से घनिष्ठता से संबंधित है। वस्तुतः शैल चक्र एक सतत प्रक्रिया है। यह शांत व्युत्पन्न मैग्मा के शीतलन होने और संपिंडन के साथ प्रारम्भ होता है जो सतह पर उत्सर्जित हुआ हो या पृथ्वी के नीचे तक ही सीमित है।

पृथ्वी की सतह पर फैले शैलों के अपक्षरण से खंडज पदार्थ उत्पन्न होते हैं जिनका परिवहन निक्षेपण द्रोणियों में होता है। नियत समय पर गहरे दबे हुए अवसाद विरूपित और कायांतरित हो जाते हैं।

विवर्तनिक चक्र विरूपण, पुनर्गठन, उत्थान और ताजा शैलों के कटाव के साथ होता है ताकि यह चक्र जारी रहे। अतः प्लेट विवर्तनिकी शैल चक्र के लिए प्रेरक शक्ति है।

शैल चक्र के संचालन को ऊर्जा परिवर्तन या पृथ्वी प्रणालियों के भीतर ऊर्जा के पुनर्वितरण के कार्य के रूप में देखा जा सकता है। शैल चक्र विभिन्न भूगर्भीय प्रक्रियाओं की भूमिका को दशार्ता है जो एक प्रकार के शैल को दूसरे प्रकार के शैलों में परिवति र्त करने का कार्य करते हैं।

शैल चक्र हमें पृथ्वी प्रणाली के विभिन्न घटकों के बीच अंतर्संबंधों की कल्पना करने का अवसर देता है। यह जानकारी अन्य प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई है जो ग्रह पर और उस भीतर कार्य करती है।

पृथ्वी लगातार अपनी शैलकीय भूपपर्टी को पुनः चक्रित और परिवर्तित करती रही है। शैल चक्र बताता है कि किस प्रकार भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएं एक शैल को भूवैज्ञानिक समय में एक रूप से दूसरे में बदल सकती हैं।

FAQ

कायांतरित शैल कैसे बनते हैं उदाहरण दीजिए?

कायांतरित शैलें ताप अथवा दाब या फिर दोनों के कारण बनते हैं। ताप तथा दाब मूल शैल की विशेषताओं को नए खनिजों के निर्माण में बदल देते हैं। कायांतरित शैल के प्रमुख उदाहरण स्लेट, संगमरमर, हीरा, शिस्ट आदि हैं।

कायांतरित चट्टान का उदाहरण क्या है?

फाइलाइट, शीस्ट, नाइस, क्वार्टजाइट और संगमरमर।

कायांतरित चट्टान कब बनती है?

कायांतरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो अत्यधिक गर्मी या दबाव से अपने मूल रूप से बदल गई हैं। वे तब बनते हैं जब आग्नेय, अवसादी या अन्य रूपांतरित चट्टानों में भौतिक और रासायनिक परिवर्तन होते हैं।

कायांतरित चट्टानें क्या हैं?

रूपांतरित चट्टानें वे चट्टानें हैं जो अत्यधिक गर्मी और दबाव के तहत बनती हैं । आग्नेय और अवसादी चट्टानें, जब ताप और दबाव के अधीन होती हैं, रूपांतरित चट्टानों में परिवर्तित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, मिट्टी स्लेट में और चूना पत्थर संगमरमर में बदल जाता है।

कायांतरित चट्टान कहां पाई जाती है?

यह अक्सर पृथ्वी की गहराई में या भूमिगत मैग्मा के निकट होता है। हम अक्सर पर्वत श्रृंखलाओं में कायांतरित चट्टानें देखते हैं जहां उच्च दबाव ने चट्टानों को एक साथ निचोड़ दिया और वे ढेर होकर हिमालय, आल्प्स और रॉकी पर्वत जैसी श्रृंखलाएं बनाने लगीं।

कायांतरित चट्टानों के 3 तरीके क्या हैं?

कायांतरित चट्टानें तीन प्रकार से बन सकती हैं। कायापलट के तीन प्रकार हैं संपर्क, क्षेत्रीय और गतिशील कायापलट । संपर्क कायापलट तब होता है जब मैग्मा पहले से मौजूद चट्टान के संपर्क में आता है।

अवसादी और कायांतरित चट्टानों में क्या अंतर है?

तलछटी चट्टानें तब उत्पन्न होती हैं जब कण पानी या हवा से बाहर निकलते हैं, या पानी से खनिजों के अवक्षेपण से। वे परतों में जमा होते हैं। रूपांतरित चट्टानें तब उत्पन्न होती हैं जब मौजूदा चट्टानें गर्मी, दबाव या प्रतिक्रियाशील तरल पदार्थ, जैसे गर्म, खनिज युक्त पानी से बदल जाती हैं।

कायांतरित शैल क्या है?

वे शैल जो ताप अथवा दाब या फिर दोनों के कारण बनती हैं, वे कायांतरित शैल कहलाती हैं। कायांतरित शैल के प्रमुख उदाहरण स्लेट, संगमरमर, हीरा, शिस्ट आदि हैं।

कायांतरित चट्टानों की मुख्य विशेषता क्या है?

इनमें क्रिस्टलीय और बैंडेड या पत्तेदार बनावट होती है , ये चट्टानें पृथ्वी की सतह के अंदर चट्टान की परतों के साथ दबी हुई होती हैं। रूपांतरित चट्टानों के उदाहरण नीस, स्लेट, संगमरमर, शिस्ट और क्वार्टजाइट आदि हैं। स्लेट और क्वार्टजाइट टाइलें भवन निर्माण में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली रूपांतरित चट्टानें हैं।

कायांतरण चट्टान क्रिस्टलीय है?

रूपांतरित चट्टानें लगभग हमेशा क्रिस्टलीय होती हैं ; क्रिस्टलीय शिस्ट शब्द का प्रयोग कायापलट मूल की सभी चट्टानों को इंगित करने के लिए किया गया है, और इस प्रकार क्रिस्टलीय चट्टान शब्द का अर्थ आग्नेय उत्पत्ति से लिया जा सकता है।

सबसे प्रतिरोधी चट्टान कौन सी है?

क्वार्ट्ज को सतह के मौसम के दौरान सबसे अधिक प्रतिरोधी चट्टान बनाने वाला खनिज माना जाता है।

कायांतरित चट्टान बनने की सबसे अधिक संभावना वाला स्थान कौन सा है?

पृथ्वी के पहाड़ों के नीचे गहराई में रूपांतरित चट्टानें पाए जाने की संभावना है। यहीं पर पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण चट्टानें कुचली, मुड़ी और निचोड़ी जाती हैं। रूपांतरित चट्टानें केवल तलछटी और आग्नेय चट्टानों से ही बन सकती हैं।

कायांतरित चट्टान की पहचान कैसे करते हैं?

यह बताने का एक तरीका है कि चट्टान का नमूना रूपांतरित है या नहीं, यह देखना है कि क्या इसके भीतर के क्रिस्टल बैंड में व्यवस्थित हैं। कायांतरित चट्टानों के उदाहरण हैं संगमरमर, शिस्ट, नीस और स्लेट।

कायांतरित चट्टान का सबसे सामान्य प्रकार क्या है?

सबसे आम रूपांतरित चट्टान नीस है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नीस चूना पत्थर को छोड़कर लगभग किसी भी अन्य चट्टान से बन सकता है, जब ये चट्टानें अत्यधिक उच्च श्रेणी की मेटामॉर्फिक प्रक्रियाओं के संपर्क में आती हैं।

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