जिस पृथ्वी पर हम सभी रहते है और जहाँ समस्त जीव – निर्जीव का निवास स्थान है उस पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई (Prithvi Ki Utpatti Kaise Hui) ? यह प्रश्न वैज्ञानिको के लिए सदा के चिंतन का विषय रहा इस लेख में पृथ्वी के निर्माण प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण कर रहा हूँ।
पृथ्वी की उत्पत्ति(Prithvi Ki Utpatti Kaise Hui)
पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न दार्शनिकों व वैज्ञानिकों ने अनेक परिकल्पनाएं प्रस्तुत की हैं। जिन्हें मोटे तौर पर दो वर्गों में रखा जा सकता है।
कांट, लाप्लॉस, आल्फवेन के मत पहले वर्ग के हैं और चेंबरलिन-मोल्टन, जींस-जेफ़्रीज, रसेल, होयल-लिट्लटन, ओटो शिमिड आदि के मत दूसरे वर्ग के।
अद्वैत संकल्पना
1.काण्ट की वायब्य राशि संकल्पन
2.लाप्लास की नेबुला संकल्पना
समर्थक रॉस लॉकियर
द्वैत संकल्पना
1.चैम्बरलीन की ग्रहाणु परिकल्पना
2.जेम्स जीन्स एवं जेफ़्रीज की ज्वारीय संकल्पना
3.रसेल की द्वैतारक परिकल्पना
आधुनिक सिद्धांत
1.अन्तर तारक धूल परिकल्पनाः आटो स्मिड
2. फोटो प्लेनेटरी संकल्पना: जी॰ पी॰ कीपर
3. अन्तर तारक बादल परिकल्पना: अल्फवेन
4. चक्रण एवं ज्वारीय परिकल्पना: रॉसजन
5. चुम्बकत्व सिद्धांत: फ्रेड होयल
6. सीफीड परिकल्पना: के॰ सी॰ बनर्जी
7. वृहस्पति सूर्य द्वैतंत्र परिकल्पनाः ई॰ एम॰ द्रौबिस्की
8. बिगबैग सिद्धांत: जार्ज लेमटर और राबर्ट वेगनर
कांट की गैसीय या निहारिका परिकल्पना
कांट ने 1755 में पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में अपना मत प्रस्तुत किया। आदिकाल में ठोस और ठण्डे कणों से बने आद्य पदार्थ या आदिकालिक पदार्थ ब्रह्यांड में छितराये हुये थे। ये आद्य पदार्थ गुरूत्वाकर्षण से एकत्र होकर आपस में टकराने लगे।
कणों के आपस में टकराने से ताप या ऊर्जा उत्पन्न हुई, फलस्वरूप आद्य पदार्थ द्रव और फिर गैसीय अवस्था में परिवर्तित हुये। गैसीय पुंज केंद्रित होकर परिभ्रमण करने लगा। परिभ्रमण गति में केंद्रमुखी बल, अर्थात् गुरूत्व बल की अपेक्षा केन्द्र-बहिर्मुखी अर्थात् अपकेन्द्र बल अधिक बढ़ने लगा जिससे गैसीय पुंज में उभार आया।
इस उभार में गोलाकार छल्ले बनने लगे और उनकी संख्या 9 पहुंच गई। ये छल्ले निहारिका के रूप में अलग हो गये और इनमें से प्रत्येक ने ठण्डा होकर एक-एक ग्रह का रूप ले लिया। मूल निहारिका का बचा भाग (अवशेष) सूर्य बना। इस प्रकार, सौर परिवार की रचना हुई।
गैसीय परिकल्पना का आलोचनात्मक विश्लेषण
1. कांट ने आदि द्रव्य के स्रोत को नहीं समझाया है
2. काट ने कहा कि आदि द्रव्य की कणों में गुरुत्वाकर्षण की ऊर्जा के कारण टक्कर होने लगी उन्होंने यह नहीं समझाया कि किस प्रकार ऊर्जा का वह स्रोत जिसने इन कणों में गति उत्पन्न की (जो आरंभिक अवस्था में ठंडी और गतिहीन थे) अचानक सक्रिय हो गया
3. गति के नियम के अनुसार कणों की टक्कर से कभी घूमने गति उत्पन्न नहीं होती है
4. कांट की परिकल्पना में निहारिका के घूर्णन की गति गैसीय द्रव्य के आकार में वृद्धि के साथ बढ़ गई थी यह भी गति के नियम के वैज्ञानिक सिद्धांत के विपरीत है
निष्कर्ष
यद्यपि आरंभ में कांट की परिकल्पना को व्यापक स्तर पर सराहना मिली लेकिन बाद में ऐसी नकार दिया गया क्योंकि यह अनुमान और न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के गलत अनुप्रयोग तथा सामान्य संकल्पनाओं पर आधारित थी |
लेकिन फिर भी हम इस तथ्य को नहीं नकार सकते हैं कि यह पृथ्वी की उत्पत्ति के रहस्य को सुलझाने के लिए किया गया पहला वैज्ञानिक प्रयास था।
लाप्लॉस की निहारिका परिकल्पना
आदिकाल में एक गतिशील गर्म निहारिका ब्रह्यांड में परिभ्रमण कर रही थी। गर्म निहारिका धीरे-धीरे ठण्डी हुई। पहले ऊपरी भाग ठण्डा हुआ, जिससे उसमें सिकुड़न पड़ने लगी और उसका आयतन घटने लगा।
निहारिका के आयतन में कमी आने पर उसकी परिभ्रमण गति बढ़ गई। निहारिका से एक छल्ला निकलकर उसका चक्कर काटने लगा। फिर, बारी-बारी से छल्ले निकलकर निहारिका की परिभ्रमण-दिशा में उसका चक्कर काटने लगे।
प्रत्येक छल्ला एक-एक ग्रह बना। प्रत्येक ग्रह पहले गैसीय अवस्था में था और बाद में तरल अवस्था में आया और अंत में ठोस भूपटल का निर्माण हुआ। निहारिका का अवशिष्ट पुंज सूर्य बना। उपर्युक्त प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से ग्रहों से उपग्रहों की उत्पत्ति हुई।
आलोचनात्मक विश्लेषण
लाप्लास ने माना कि अंतरिक्ष में गर्म तप्त निहारिका विद्यमान थी लेकिन उन्होंने निहारिका की उत्पत्ति के स्रोत और उसे स्रोत के विषय में नहीं बताया जहां से उसे ताप और घूर्णन की गति मिल रही थी
लाप्लास ने यह नहीं समझाया कि निहारिका से अलग हुए अनियमित वलय से सिर्फ जो वलयों उससे अधिक या कम वलय क्यों नहीं बने
यदि यह घूर्णी निहारिका से बने हैं तो निहारिका का एक भाग अर्थात सूर्य की आकार में कमी के कारण सबसे तेज गति से घूर्णन करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता
आलोचक यह मानते हैं कि यदि सूर्य निहारिका का शेष भाग है तो इसमें मध्य भाग में उभर होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है
लाप्लास की परिकल्पना के अनुसार सभी ग्रहों को अपने जनक ग्रह की दिशा में परिक्रमा करनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि शुक्र और वरुण अपने जनक ग्रह के विपरीत दिशा में परिक्रमा करते हैं
यदि हम लाप्लास के मत को स्वीकार करें कि ग्रहों का निर्माण निहारिका से हुआ है तो ग्रहों को आरंभिक अवस्था में तरल अवस्था में होना चाहिए था, और इसलिए वे सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में सक्षम नहीं थे क्योंकि केवल ठोस द्रव्य ही गोलाकार पाठ में अपने आकार को कोई बिना परिक्रमा कर सकता है
अंग्रेज बहुत एक विज्ञानी जेम्स क्लर्क मैक्सवेल एवं सर जेम्स जींस ने दिखाया कि वलयों का द्रव्यमान अलग-अलग निर्मित ग्रहण के निर्माण हेतु गुरुत्वाकर्षण प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं था
आर एस मॉर्गन के अनुसार निहारिका के कणों के बीच अल्प मात्रा में संबद्धता से ब्लैक का निर्माण सतत रूप से होगा आंतरायिक प्रक्रिया के रूप में नहीं
चेंबरलिन-मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना
चेंबरलिन और मोल्टन ने 20वीं सदी के आरंभ में (1904 में) दो तारों से उत्पत्ति-सम्बन्धी परिकल्पना प्रस्तुत की। ब्रह्यांड में एक विशाल तारा, जो स्वयं चक्कर काट रहा था, सूर्य के समीप आ पहुंचा जिससे उसमें एक तीव्र ज्वारीय शक्ति उत्पन्न हुई।
इस ज्वारीय शक्ति से सूर्य के पदार्थ अलग होने लगे और आकाश में दूर फैल गये। विशाल तारे ने (गुरूत्वाकर्षण द्वारा) सूर्य से निकले पदार्थ को (गैस के अणुओं को) अपनी ओर खींचा जो एक केन्द्रक में एकत्र हो गया।
केन्द्रक के चारों ओर ग्रहाणुओं के एकत्रीकरण से ही पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की रचना हुई। ज्यों-ज्यों केन्द्रक में ग्रहाणु जुटते गये, पृथ्वी का आकार बढ़ता गया। पहले तीव्र गति से बढ़ा और बाद में मंद गति से। कालांतर में पृथ्वी वर्तमान रूप में आई।
पृथ्वी के विकास काल में आंतरिक ऊष्मा की उत्पत्ति हुई। ग्रहाणुओं के आपसी टकराव और आंतरिक भागों में दबाव बढ़ने से अणुओं का पुनः संगठन हुआ, जिससे आंतरिक भाग का घनत्व बढ़ गया।
आलोचनात्मक विश्लेषण
जेफ्री ने यह कहकर परिकल्पना की आलोचना की कितने बड़े ग्रह सूर्य से बाहर निकले पदार्थ से नहीं बन सकते हैं
यह पूर्वानुमान है कि केंद्र के आकार में वृद्धि ग्रहणों के संयोजन के कारण हुई थी पर विश्वास नहीं किया जा सकता है
जींस-जेफ्रीज की ज्वारीय परिकल्पना
जेम्स जींस और हैरोल्ड जेफ़्रीज, ने 1919-26 में अपनी ज्वारीय परिकल्पना का प्रतिपादन किया। सौरमण्डल का निर्माण सूर्य और एक अन्य बड़े तारे के संयोग से हुआ है। बड़ा तारा सूर्य की समीप में आकर आगे बढ़ गया।
समीप आकर आगे बढ़ने से उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य पर ज्वार उत्पन्न हुआ और सूर्य का एक भाग लंबे सिगार के रूप में ऊपर उठ गया। यह सूर्य का गैसीय भाग था। इसका आकार जीभ की तरह था।
यह ज्वारीय पदार्थ (सिगार के रूप में सूर्य से पृथक हुआ गैसीय भाग) तारे की दिशा में बढ़ता गया, किन्तु तारे के दूर निकल जाने पर सूर्य का चक्कर लगाने लगा।
सिगार के रूप में निकला भाग धीरे-धीरे ठण्डा होकर टूट गया या कई खण्डों में बँट गया। बाद में ये खण्ड घनीभूत होकर ग्रह बन गये और सूर्य की परिक्रमा करने लगे। इसी तरह, ग्रहों से कुछ पदार्थ पृथक होकर उपग्रह बन गये।
इस परिकल्पना की विशेषताएं
यदि सभी ग्रहों को एक रेखा में व्यवस्थित कर दिया जाए तो हम देखेंगे कि बड़े ग्रह केंद्र में और अपेक्षाकृत छोटे ग्रह सिरों पर स्थित हैं यह शिगार की आकार की व्यवस्था इस परिकल्पना का समर्थन करती है
जेम्स की परिकल्पना की अन्य विशेषता यह है कि उपग्रह की व्यवस्था भी शिगार की आकार की है यह पुनः इस परिकल्पना का समर्थन करती है
अपेक्षाकृत छोटे ग्रहों को ठंडा होने में कम समय लगता है अतः इन ग्रहों में या तो बहुत कम अथवा कोई उपग्रह नहीं है
इस परिकल्पना में यह माना गया है कि सभी ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य के पृथक तंतु से हुई है सभी ग्रह सामान द्रव्य से निर्मित हैं जो पुनः इस परिकल्पना का समर्थन करता है
यह परिकल्पना सफलतापूर्वक इस तथ्य को सिद्ध करती है कि सभी ग्रह एक ही समय पर निर्मित हुए हैं
आलोचनात्मक विश्लेषण
डेलेबिन जैसी समीक्षकों के अनुसार ब्रह्मांड के विभिन्न तारों के बीच की दूरी बहुत अधिक है अतः तारीख की सूर्य के इतने अधिक निकट आ जाने की संभावना बहुत कम है कि वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा प्रभावित हो सके
रसल के अनुसार इसकी कोई संभावना नहीं है कि सूर्य से तंतु द्वारा इतनी अधिक मात्रा में पदार्थ बाहर निकल आया हो कि इतनी अधिक दूरियों पर स्थित ग्रहों का निर्माण हो सके
कुछ वैज्ञानिकों का यह मत है कि गृह गैसीय तंतु के ठंडा होने से नहीं बन सकते हैं बल्कि ऐसा मानते हैं कि गैसीय तंतु ब्रह्मांड में अत्यधिक उच्च तापमान की उपस्थिति के कारण संभवत लुप्त हो गया हो
अनेक गोल भौतिक वैज्ञानिकों का यह मत है कि तारे द्वारा ग्रह पर डाला गया कोणीय संवेग हमारे सौरमंडल के ग्रहों की विद्यमान कोणीय संवेग से मल खाने के लिए पर्याप्त रूप से उच्च नहीं था
रसेल की द्वैतारक परिकल्पना
सूर्य ग्रहों का जन्मदाता नहीं है। आदिकालीन सूर्य आकाश में अकेला तारा नहीं था। उसका एक साथी भी था। दोनों मिलकर द्वैतारक प्रणाली बनाते थे। एक तीसरा तारा सूर्य के साथी तारे के निकट से गुजरा जिससे साथी तारे में ज्वार उत्पन्न हो गया और ग्रहों का निर्माण हुआ।
ग्रहों के पारस्परिक आकर्षण से जो ज्वार उत्पन्न हुआ उससे उपग्रहों की उत्पत्ति हुई। सूर्य बहुत दूर था, अतः वह तीसरे तारे के प्रभाव से अछूता रहा।
ओटो श्मिड की अंतर-तारक धूल परिकल्पना
ब्रह्यांड में गैस और धूलकण बिखरे पड़े हैं। सूर्य ने गुरूत्वाकर्षण के कारण कुछ गैसों और धूलकणों को आकर्षित कर लिया। ये सूर्य के चारों ओर मेघ के समान फैलकर सूर्य की परिक्रमा करने लगे।
अपेक्षाकृत भारी धूलकण केन्द्र तल पर एकत्र होते गये जिससे धूल की चक्रिका बनने लगी। धूलकणों के टकराने से उनकी गतिज ऊर्जा का पर्याप्त भाग ऊर्जा में परिणत होकर अंतरिक्ष में विकीर्ण होने लगा।
कणों के टकराने के साथ-साथ उनकी आपेक्षिक गति में कमी आई, जो चक्रिका बनाने में सहायक हुई। चक्रिका रूप में एकत्र धूलकण पहले ग्रहों के भू्रण (प्रारंभिक) रूप में आये और बाद में क्षुद्रग्रह बन गये। ये क्षुद्र ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने लगे। पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों का निर्माण ठोस पदार्थों से हुआ।
क्षुद्र ग्रहों के बिखरे पदार्थों के आपस में मिल जाने पर उनका आकार बड़ा हो गया और वे ग्रह बन गये। ग्रहों के निर्माण के बाद बचे पदार्थ ग्रहों की परिक्रमा करने लगे। कालांतर में उनके घनीभूत होने पर उपग्रह बने।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धांत
वर्तमान समय में बिग-बैंग सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सिद्धांत है। इसे विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना भी कहा जाता है। 1920 ई. में एडविन हब्बल ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएं एक-दूसरे से दूर हो रही हैं।
बिग-बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट क्र बाद एक सेकंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ और इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई।
बिग-बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ। बिग-बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 डिग्री केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।
ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है, आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हॉयल ने इसका विकल्प ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है।
महाविस्फोट या बिग बैंग परिकल्पना
आद्य पदार्थ या आदिकालिक पदार्थ से निर्मित एक विशालकाय आग के गोले के भीतर महाविस्फोट हुआ और ब्रह्यांड की उत्पत्ति हुई। तब से इसका निरंतर प्रसार होता जा रहा है।
विस्फोट के फलस्वरूप अतिसघन पिंड छिन्न-भिन्न होकर अंतरिक्ष में छिटक गया, जहाँ इसके अंश अभी तक हजारों किलोमीटर प्रति सेकंड की दर से गतिमान हैं। इन्हीं गतिशील अंशों से मंदाकिनियों, आकाशगंगाओं, ताराओं और ग्रहों ;जिनमें पृथ्वी तथा चंद्रमा आते हैंद्ध की उत्पत्ति हुई।
हब्बल ने भी आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर बताया है कि वे एक-दूसरे से दूर जा रही हैं। सिद्धांततः यदि प्रक्रिया उलट दी जाये तो वे एक केन्द्र पर एकत्र होकर महाविस्फोट कर सकती हैं। यह महाविस्फोट (बिग बैंग) सिद्धांत बताता है कि अरबों वर्ष पूर्व घने आदिकालिक पदार्थों के एक केन्द्र पर एकत्र होने से महाविस्फोट के फलस्वरूप सृष्टि की रचना हुई।
केन्द्र में दाब और तापमान के बढ़ने से आण्विक प्रतिक्रियाएँ आरंभ हुईं। हाइड्रोजन का संलयन हीलियम में होने पर भारी मात्रा में ऊर्जा विमुक्त हुई और गैसों का विस्फोट हुआ। विस्फोट से अभिनव तारों की उत्पत्ति हुई। सूर्य इसी तरह बना।
पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व हुई। इसके बाद इस पर वायुमण्डल, जलमण्डल, स्थलमण्डल और जीवमण्डल बने। जीवों का जन्म लगभग 50 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ। जीवों का विकास पहले जल में और तब स्थल पर हुआ। मानव का प्रादुर्भाव 10 लाख वर्ष पूर्व माना जाता है।
FAQ
पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?
पृथ्वी पर जीवन आज से लगभग 460 करोड़ वर्ष पूर्व विकसित हुआ। पृथ्वी की संरचना परतदार है, जिसमें वायुमण्डल की बाहरी सीमा से पृथ्वी के केन्द्र तक प्रत्येक परत की रचना एक – दूसरे से भिन्न है। कालांतर में स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल की रचना हुई। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति इसके निर्माण के अन्तिम चरण में हुई।
पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित बिग बैंग सिद्धांत ?
इससे आकाशगंगाओं का निर्माण होता है। आकाशगंगाओं का व्यास 80 k से 150 k प्रकाश-वर्ष तक होता है। आकाशगंगा के भीतर, अनेक विशाल बादल के रूप में हाइड्रोजन गैस का संचय होता रहा जिसे नीहारिका ( नेबुला )कहते हैं। निहारिका के भीतर, अनेको गैस के झुण्ड विकसित हुए।
पृथ्वी पर पहला व्यक्ति कौन है?
हिंदू मान्यता के अनुसार, धरती पर पहला आदमी ‘मनु’ हुआ। मत्स्य पुराण में जिक्र है कि पहले ब्रrा ने दैवीय शक्ति से शतरूपा (सरस्वती) की रचना की, फिर शतरूपा से मनु का जन्म हुआ। मनु ने कठोर तपस्या के बाद अनंती को पत्नी रूप में प्राप्त किया। शेष मानव जाति मनु और अनंती से उत्पन्न हुई मानी गई है।
पृथ्वी की उत्पत्ति कब हुई?
पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ। भूवैज्ञानिक घड़ी जिसमें घटनाएँ और युग दिये हुए हैं।
पृथ्वी पर सबसे पहला जीव कौन सा है?
पृथ्वी का सबसे पुराना जीव नील हरित शैवाल है।
पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म कब हुआ था?
पृथ्वी पर मानव की वर्तमान प्रजाति 3.5 लाख वर्ष पूर्व आई थी। इसका पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने 2300 से 300 वर्ष के बीच दक्षिणी अफ्रीका में रहने वाले सात लोगों के जीनोम (जीवों के जीन का समूह) का अध्ययन किया।
सर्वप्रथम मनुष्य की उत्पत्ति कब हुई?
आधुनिक मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले , सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे। होमो इरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया।
प्रथम मानव किस जाति का था?
साक्ष्य अभी भी सुझाव देते हैं कि सभी आधुनिक मनुष्य होमो सेपियन्स की अफ्रीकी आबादी के वंशज हैं जो लगभग 60,000 साल पहले अफ्रीका से बाहर फैल गए थे।